द्रौपदी मुर्मू (64 साल) ने 25 जुलाई यानी सोमवार को देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। वे देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने उन्हें शपथ दिलाई। अपने भारण के दौरान उन्होंने कहा- मैं राष्ट्रपति बनी, यह लोकतंत्र की महानता है। मेरा राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है।
मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब भी सपने देख सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है। मेरे इस निर्वाचन में, पुरानी लीक से हटकर नए रास्तों पर चलने वाले भारत के आज के युवाओं का साहस भी शामिल है। ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ।
मुझे ये जिम्मेदारी मिलना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है- द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा- ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी आजादी के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी। और आज आजादी के 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है। ऐसे ऐतिहासिक समय में जब भारत अगले 25 वर्षों के विजन को हासिल करने के लिए पूरी ऊर्जा से जुटा हुआ है, मुझे ये जिम्मेदारी मिलना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है।
मेरी जीवन यात्रा एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू हुआ- राष्ट्रपति मुर्मू
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, मैंने अपनी जीवन यात्रा ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां मेरे लिये प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने की तरह ही था। लेकिन बहुत कठिनाइयों के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली पहली बेटी बनी। ये हमारे लोकतंत्र की शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर- सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है।