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रामदेव को कोरोनिल मामले में कोर्ट से झटका, कोर्ट ने कहा- हमें न बताएं क्या करना है क्या नही

नई दिल्ली: सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि बाबा रामदेव के खिलाफ रेजिडेंट डॉक्टर्स मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका को नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 91 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति के बिना खारिज नहीं किया जा सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने पतंजलि के संस्थापक के खिलाफ गलत सूचना देने और एलोपैथी के खिलाफ बयान देने के लिए सात डॉक्टरों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया और कहा, “प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान मुकदमे को सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 91 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दिए बाहर नही किया जा सकता है।

इसके बाद बाबा रामदेव की ओर से पेश हुए वकील मिजान सिद्दीकी ने कोर्ट से अपने आदेश में इस बयान को दर्ज नहीं करने का अनुरोध किया जिसपर कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए पूछा कि आप होते कौन हो बताने वाले की क्या दर्ज करना है क्या नही।

याचिकाकर्ता डॉक्टर्स एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने कहा, वह जनता के सामने बयान दे रहे हैं कि उनके पास यह कहने का लाइसेंस है कि कोरोनिल कोरोना का इलाज है। सरकार ने कहा कि आप यह नहीं कह सकते। मैं जो कह रहा हूं वह यह है कि या तो आपके पास ऐसे बयान देने का लाइसेंस है या आपके पास नहीं है, और यदि आप नहीं कहते हैं, तो कृपया जनता को गुमराह न करें। यदि आप दावा करना चाहते हैं कि कुछ दवा है, तो उसके लिए नियामक प्रक्रिया निर्धारित है।

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