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‘मैड हिन्दू’… महाराष्ट्र के किंगमेकर बाला साहब ठाकरे

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बाला साहब ठाकरे कभी सत्ता के शीर्ष कुर्सी पर नहीं बैठे लेकिन महाराष्ट्र के किंगमेकर की भूमिका अदा। उन्होंने मराठी लोगों को स्वाभिमान दिया।

महाराष्ट्र के किंगमेकर
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एक शख्स जिसका वर्चस्व सूबे में काफी ऊंचे स्थान पर था। जिनके इर्द-गिर्द करीब चार दशक तक महाराष्ट्र की राजनीति घूमती रही। उनके नाम की प्रदेश भर में तूती बोलती थी। जी हा, हम बात कर रहे है बाला साहब ठाकरे की। राजनीति का वह चेहरा जो कभी सत्ता के शीर्ष कुर्सी पर नहीं बैठे लेकिन महाराष्ट्र के किंगमेकर की भूमिका अदा। बाल ठाकरे ने हिंदूवादी राजनीति पार्टी ‘शिव सेना’ कि स्थापना की थी। वो अपने आपको मैड हिंदु बताते थे।

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शिवसेना का अर्थ और अस्तित्व ठाकरे शब्द से ही जुड़ा है। कैसे अखबारों के लिए कार्टून बनाने वाले बाल ठाकरे महाराष्ट्र के बाला साहब ठाकरे बन गऐ। उनकी मर्जी के बिना न तो सूबे में सरकार बनती थी और ना ही सत्ता चलती थी। उनकी जुबान यानी धनुष से निकला हुआ बाण था, जो कभी निशाने से नहीं चूकता था।

कैरियर की शुरुआत कार्टूनिस्‍ट के रूप में

महाराष्ट्र को अपना गढ़ बनाकर काम करने वाले बालासाहेब ठाकरे अपने विवादित बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियां बटोरते रहे। लोगों के नायक रहे बाल ठाकरे ने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी। महाराष्ट्र के किंगमेकर का जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे में हुआ था। ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत एक कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। सही मायने में बाल ठाकरे की कार्टूनिस्ट से नेता बनने के सफर की शुरुआत यहीं से हुई।

बाल ठाकरे ने अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई के एक अंग्रेजी दैनिक ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ के साथ एक कार्टूनिस्‍ट के रूप में की। इस समाचार-पत्र में बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के पद पर थे और अखबार के लिए व्यंग्य चित्र बनाते थे। परंतु कभी-कभी उनके व्यंग्य चित्र इतने तीखे हो जाते थे कि तत्कालीन नेता या सरकार उनके चित्रों पर आपत्ति जताती थी और समाचार-पत्र के ऑफिस में शिकायत करती थी परंतु बाल ठाकरे ने कभी भी अपने चित्रों और अपनी आवाज को बुलंद करने में समझौता नहीं किया।

1960 में बाल ठाकरे ने कार्टूनिस्‍ट की यह नौकरी छोड़ दी और अपना राजनीतिक साप्‍ताहिक अखबार मार्मिक निकाला। बाल ठाकरे के कार्टून ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ में भी हर रविवार को छपा करते थे।

महाराष्ट्र के किंगमेकर ने ‘देश को दिशा दी

इसी बीच 1960 में महाराष्ट्र में दक्षिण भारतियों को लेकर असंतोष फैलने लगा। मुम्बई के सरकारी दफ्तरों में दक्षिण भारतीयों का बोलबाला था, ऐसे में मराठियों को लगने लगा था कि उनका हक उन्हें नहीं मिल रहा था। मराठी युवाओं के मन में लगी इस चिंगारी को सबसे पहले हवा दी बालसाहेब ठाकरे ने। मार्मिक के माध्‍यम से बाल ठाकरे ने मुंबई में गुजरातियों, मारवाडियों और दक्षिण भारतीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मुहिम चलायी।

बालासाहेब ठाकरे ने वर्ष 1966 में शिवसेना के नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई। उन्होंने महाराष्ट्र और देश को सिर्फ राजनीतिक दिशा ही नहीं दी, बल्कि महाराष्ट्र की अस्मिता का मान दिया। मराठी लोगों को स्वाभिमान दिया। उन्होंने कहा गर्व से कहो हिंदू है, और मराठी है, इस बात का आत्मविश्वास दिया।

अपने चालीस साल से भी अधिक के राजनीतिक जीवन में कोई ऐसा विषय नहीं हुआ करता था, जिस पर ठाकरे की राय नहीं हुआ करती थी। एक ‘गॉडफॉदर’ की तरह बाल ठाकरे हर झगड़े सुलझाने लगे। चाहे राष्ट्रीय राजनीति हो या कला या खेल या कोई और भी विषय, बाल ठाकरे उस पर टिप्पणी करने से परहेज नहीं करते थे। यहां तक की फिल्मों के रिलीज में भी उनकी मनमानी चलने लगी।

छाती ठोक कर किया हिंदुत्व का समर्थन 

महाराष्ट्र के किंगमेकर ठाकरे की खासियत थी कि वह अपने विरोधियों पर पूरी ताकत से हमला करते थे। 80 और 90 के दशक में बाल ठाकरे तेजी से उभरे क्योंकि उस समय हिंदुत्व का मुद्दा सिर चढ़ कर बोल रहा था और ठाकरे कट्टर हिंदुत्व के समर्थक थे। राम मंदिर आंदोलन के समय शिवसेना तेजी से हिंदुत्व की तरफ बढ़ती नजर आई।

1987 में विले पार्ले के विधानसभा उपचुनाव में हिंदुत्व के नाम पर लड़ने वाली शिवसेना इकलौती पार्टी थी। इस चुनाव में हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के बाद चुनाव आयोग ने ठाकरे से छह साल के लिए मतदान का अधिकार छीन लिया था। 1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने का श्रेय भी इन्हीं को गया।

इस मामले में बाला ठाकरे ने खुद भी सहमति जताई और कहा हमारे लोगों ने बाबरी मस्जिद गिराया है और मुझे उसका अभिमान है।उन्होंने एक समय यहां तक कह दिया था, हिंदू अब मार नहीं खाएंगे, उनको हम अपनी भाषा में जवाब देंगे। जिसके बाद बाद मुंबई में हिंदु और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे हुए। जिनको शिवसेना और बाल ठाकरे का नाम बार-बार जोड़ गया।

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