
Sanjeevani Yojana : संजीवनी योजना अनूठी है। न जाति देखती है न धर्म, न लिंग देखती है न स्थान, न आमदनी देखती है, न हैसियत। समाजवादी और सम्यक दृष्टि के साथ जनता को देखने वाला भाव, जनता को सहूलियत देने वाला भाव। दावा तो हर पार्टी करती है कि उसके पास ऐसा ही भाव है, ऐसा ही नजरिया है। अगर है, तो आजादी के बाद अब तक क्यों नहीं दिखा?
न अरविन्द केजरीवाल बुजुर्ग हैं न उनकी आम आदमी पार्टी, फिर भी संजीवनी योजना में समाजवादी और लोक कल्याणकारी दर्शन के महीन तत्व तो मौजूद हैं। बुजुर्गों के लिए नजरिया बदलने की जरूरत का अहसास है। यह सैद्धांतिक रूप से भी विचारणीय है और चुनावी राजनीति में नवाचार को भी सामने रखता है। हालांकि चुनाव के समय ऐसी योजनाओं या पहल को सामने लाने पर यह आलोचनात्मक रवैया भी जरूर सामने आता है कि ऐसा वोटों के लिए किया जा रहा है।
‘संजीवनी’ की पहल को योजना बनने का इंतजार
संजीवनी, एक पहल है। योजना तब होगी जब यह औपचारिक रूप से दिल्ली सरकार की ओर से अधिसूचित होगी। ऐसा तब होगा जब चुनाव में आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता में आएगी और आम आदमी पार्टी सत्ता में तब आएगी जब जनता का समर्थन अरविन्द केजरीवाल और आतिशी के नेतृत्व में चली सरकारों को काम काज के आधार पर मिलेगा। संजीवनी की पहल इस हिसाब से चुनावी घोषणा भी कही जा सकती है। मगर, जिस तरह से चुनावी घोषणा को निष्प्रभावी बनाने के लिए स्वयं आम आदमी पार्टी की सरकार के दो प्रमुख विभाग महिला एवं बाल विकास और परिवार कल्याण सामने आए हैं, उससे पता चलता है कि एलजी के माध्यम से पर्दे के पीछे से केंद्रीय सरकार की हुकूमत कितना प्रभावी है और चुनावी राजनीति में स्पर्धा कितनी तेज है।
संजीवनी की पहल करते हुए अरविन्द केजरीवाल ने ऐलान किया कि “संजीवनी योजना के तहत हमारे 60 साल के ऊपर के जितने बुजुर्ग हैं, उन सभी बुजुर्गों का मुफ्त इलाज, चाहे प्राइवेट हो चाहे सरकारी अस्पताल, चाहे अमीर हो चाहे गरीब- सबके इलाज का खर्चा दिल्ली सरकार वहन करेगी।“
बुजुर्गों को अब मेडिक्लेम लेने की जरूरत नहीं
संजीवनी की पहल के बाद बुजुर्गों के लिए व्यक्तिगत तौर पर मेडिक्लेम लेने की गरज खत्म हो जाएगी। बुजुर्ग किसी पर आश्रित नहीं रहेंगे। परिजन उन्हें बोझ नहीं समझेंगे। उनकी सोच में भी इस वजह से बदलाव आएगा कि बुजुर्गों के लिए सरकार और देश की सोच के साथ उन्हें भी चलना चाहिए। तात्कालिक तौर पर मेडिक्लेम के खर्च से बुजुर्गों के परिजनों को ही फायदा होगा। यह फायदा बचत के रूप में होता है। एक दंपती बुजुर्ग के लिए 10 लाख के मेडीक्लेम पर नामचीन हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी सालाना 27,901 रुपया लेती है। मेडिक्लेम में अस्पताल में भर्ती होने से लेकर ओपीडी तक का खर्च बढ़ता है और संकट की घड़ी में यह बड़ी बचत के तौर पर महसूस होता है।
संजीवनी योजना, मेडीक्लेम और प्रीमियम देने से बुजुर्गों को आजाद करती है। यह गरीब ही नहीं मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भी बड़ी राहत है। पूरे बुजुर्ग समुदाय को चाहे वे गरीब हो या अमीर बड़ी राहत दिलाती है। मगर, यह सब कुछ निर्भर करता है कि संजीवनी जैसी योजना अमल में लाई जाए। अरविन्द केजरीवाल ने कवच कार्ड के तौर पर संजीवनी योजना को जनता के सामने रखा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बुजुर्ग बढ़ रहे हैं। ये पक्के वोटर भी हैं। आने वाले समय में राजनीति को भी और अधिक प्रभावित करते दिखेंगे।
बूढ़ी हो रही है दिल्ली, जरूरत बन चुकी है ‘संजीवनी’
आंकड़ों पर गौर करें तो दिल्ली में 2018 में 21 लाख लोग 60 साल से अधिक उम्र के थे और यह दिल्ली आबादी का 8.5 प्रतिशत है। 2021 में बुजुर्गों की आबादी का प्रतिशत बढ़कर 10.1 हो चुका है। माना जा रहा है कि दिल्ली में बुजुर्गं की संख्या 25-26 लाख है। 2018-19 की आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में अनुमान रखा गया था कि 2041 में बुजुर्गों की संख्या के मुकाबले 19 साल से कम उम्र के युवाओं की संख्या घट जाएगी। यानी दिल्ली बूढ़ी हो जाएगी। देश में बुजुर्गों की मौजूदगी की तस्वीर भी मोटे तौर पर वही है जो दिल्ली की है। ऐसे में बुजुर्गों के लिए पुख्ता व्यवस्था करना और भी बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है।
संजीवनी की पहल में यह जिम्मेदारी नज़र आती है। अनलिमिटेड इलाज इस योजना का आकर्षण है। आमदनी अधिक हो या कम, पेंशनधारी हों या नहीं- इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हर व्यक्ति जो बुजुर्ग है यानी 60 साल से अधिक उम्र का है वह संजीवनी योजना के तहत अपनी पसंद के हिसाब से सरकारी या निजी अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है।
दुनिया से भी सीख लेने की जरूरत
वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स में नंबर वन फिनलैंड अनुकरणीय उदाहरण पेश करता है। यहां जीवन प्रत्याशा 84 साल है। 27 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी है। मगर, व्यवस्था देखिए। 60 साल से अधिक उम्र का हर शख्स ओल्ड एज पेंशन का हकदार है। पेंशन भी 1888 यूरो होता है। अगर एक यूरो को 89 रुपये के बराबर मानते हुए गणित निकालें तो हर बुजुर्ग को 1.68 लाख रुपये का पेंशन हर महीने मिलता है। हमारे देश में ओडिशा में 300 रुपये तो दिल्ली में अधिकतम दो से ढाई हजार रुपये तक पेंशन बुजुर्गों को मिलता है। ऐसे में इलाज फ्री और अनलिमिटेड करने की आवश्यकता कितनी बड़ी है आप किसी बुजुर्ग से पूछ सकते हैं। जो केवल इसलिए अपने आपको अपने परिवार पर बोझ मानते हैं कि इलाज का बड़ा खर्च परिजनों को उठाना पड़ता है।
बुजुर्गों को उनके घर पर हेल्थ केयर मिले, मेडिकल चेकअप और दूसरी सुविधाएं मिले, इस दिशा में तो देश अभी सोच भी नहीं रहा है। संजीवनी की पहल समूचे देश को इस दिशा में सोचने को बाध्य करता है। हमारे देश में बुजुर्गों के लिए रियायती टिकट की व्यवस्था भी रही है। मगर, उसे खत्म भी किया गया है। यह भी बुजुर्गों के लिए हमारे सोच की उलझन रही है।
होना तो यह चाहिए कि जीवन के हर क्षेत्र में बुजुर्गों को रियायती या मुफ्त सुविधाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए। आखिर इन्हीं बुजुर्गो ने तो देश को खड़ा रहने में, आगे बढ़ने में अपना खून-पसीना, अपनी जवानी लगाई है। बुजुर्गों के लिए नजरिए को बदलने के लिए प्रेरित करती है संजीवनी की पहल।
प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व टीवी पैनलिस्ट
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