
वन विभाग ने चीता प्रोजेक्ट की तर्ज पर विलुप्त होते स्याहगोश (कैरेकल) को बसाने की प्लानिंग बनाई है। अभी इसके लिए घाटीगांव का जंगल उपयुक्त माना गया है। इस जंगल में बाड़ा बनाने के लिए स्थानों का चयन किया जा रहा है। जैसे ही स्याहगोश उत्तर प्रदेश या राजस्थान से मिलने की स्वीकृति मिलेगी। स्याहगोश को घाटीगांव में एक्सपर्ट टीम के माध्यम से बाड़ों में छोड़ा जाएगा।
इसके बाद धीरे-धीरे इनका कुनबा बढ़ाया जाएगा।स्याहगोश के प्रोजेक्ट के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) स्तर से प्रयास शुरू हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने स्याहगोश की मौजूदगी के प्रमाण भी ग्वालियर-चंबल संभाग में दिए थे, लेकिन साल 2019 में सर्वे के दौरान वन विभाग को उनकी उपस्थित नहीं दिखी।
हालांकि साल 2010 में भिंड मार्ग पर रात्रि के वक्त स्याहगोश वन अधिकारियों को सड़क पार करते समय दिखाई दिया था। इस प्रोजेक्ट की पुष्टि प्रधान मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान ने की है। एक्सपर्ट की मानें तो घाटीगांव के जंगल के अलावा कूनो नेशनल पार्क का जंगल भी स्याहगोश के लिए उपयुक्त है, लेकिन प्राथमिकता घाटीगांव के जंगल को दी जा रही है। इससे इस क्षेत्र में स्याहगोश के कुनबे को बढ़ाया जा सकता है।