महालया यानि सर्व पितृ या पितृ विसर्जनी अमावस्या। पितृ पक्ष की ये अमावस्या यूं तो पितरों को विदाई का दिन है, लेकिन यह मां दुर्गा के आगमन की सूचक भी है क्योंकि पितरों के गमन के साथ ही नवरात्रि में मां दुर्गा का आगमन होता है। ऐसे में महालया अमावस्या को पितरों की विदाई और देवी भगवती के आगमन का संधिकाल माना जाता है, जिसमें पितरों के पूजन और तर्पण का विशेष महत्व है।
अज्ञात पितरों की तृप्ति का दिन
महालया या पितृ विसर्जन अमावस्या को पितृ पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन हम उन सभी पितरों को याद कर उनका श्राद्ध कर्म करते हैं, जिन्हें हम भूल गए या वे अज्ञात हैं।
मां दुर्गा से जुड़ा महालया का महत्व
महालया के दिन दुर्गा मां के आगमन से पहले उनकी मूर्ति को अंतिम और निर्णायक रूप भी इसी दिन दिया जाता है। इसी दिन मां दुर्गा के पंडाल को सजाए जाते हैं औऱ मां की मूर्तियों को सजाई जाती है।
महालया का मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:35 से शुरू होकर 5:23 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:48 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक
गोधुली मुहूर्त: शाम 6:02 बजे से शाम 6:26 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:13 बजे से 3:01 बजे तक