
Jaimini : वेदव्यास के मुख से महाभारत की कथाओं को सुनने वाले सुमंत, जैमिनि, शुक और पैल उनके चार शिष्य थे। जिन्होंने अपनी ही महाभारत सहिंता की रचना की थी। मगर, जैमिनि द्वारा लिखा एकमात्र “अश्वमेघ पर्व” ही बचा है, और सभी लुप्त हो गए हैं। जैमिनि द्वारा लिखा अश्वमेघ पर्व 68 अध्यायों में पूर्ण होता है। इस पर्व में जैमिनि ने जनमेजय से युधिष्ठिर के अश्वमेधयज्ञ का तथा अन्य धार्मिक बातों का सविस्तार वर्णन किया है।
भागवत पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि व्यास से जैमिनि ने सामवेद का अध्ययन किया था तथा अपने शिष्य सुमन्तु को पढ़ाया था। जैमिनि ने मीमांसा सूत्र की भी रचना की थी। यह सूत्र में 12 अध्यायों में विभक्त है। इसके 12 अध्याय 12 विषयों पर आधारित है। साथ ही 8 आचार्यों के मत का उल्लेख भी किया है, जिनका नाम है – आलेखर, कामुकायन, आश्मरणय, बादरायण, आत्रेय, लावुकायन, बादिर और कार्ष्णाजिनि। यह भी कहा जाता है कि उक्त बारह अध्यायों की भी रचना जैमिनि ने की थी, जिन्हें देवता काण्ड या संकर्षण काण्ड के नाम से जाना जाता है।
मीमांसा सूत्र के 12 अध्याय
जैमिनि द्वारा लिखे मीमांसा सूत्र के 12 अध्यायों के विषय –
पहले अध्याय में धर्म के लक्षण तथा धर्म के प्रमाणों का निरूपण किया है।
दूसरे अध्याय में कर्मभेद को बताने वाले 6 विषयों शब्दान्तर, अभ्यास, संज्ञा, गुण, प्रकरणान्तर और संख्या का वर्णन किया है।
तीसरे अध्याय विनियोजन प्रमाण का वर्णन किया है – श्रुति, लिंग वाक्य, स्थान, समाख्य, प्रकरण, के बारे में बताया गया है।
चौथे अध्याय का विषय प्रयोज्य-प्रयोजक-भाव है, जिसे बोधक प्रमाण भी कहा जाता है। जिसमें अर्थ, पाठ, मुख्य, श्रुति, प्रवृति और स्थान वर्णन किया है।
पांचवां अध्याय “क्रम” है।
छठे अध्याय का मुख्य विषय अधिकार है, जिसमें यज्ञ करने वाले के गुण और विशेषता का वर्णन किया गया है।
सातवें अध्याय में यज्ञों का निरूपण है।
आठवें अध्याय में विशेषज्ञ निदेशक का निरूपण किया गया है।
नवें अध्याय में “ऊह” के बारे में बताया है कि किस यज्ञ में किस यत्र की कौन – कौन सी क्रियाओं में किस प्रकाप परिवर्तन करके उन्हें काम में लाया जा सकता है।
दसवां अध्याय बाध और अभ्यच्चय का निरूपण करता है।
ग्यारहवें अध्याय में “तन्त्र” का निरूपण है, जिसमें केन्द्रीकरण की प्रक्रिया बताई गई है।
बारहवें अध्याय में “अवाप” का वर्णन है। यह विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया से सम्बंधित है।
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