खेल

सियासत और सुरक्षा के बीच फंसा भारत-पाक मैच, हर वर्ग और क्षेत्र से उठ रही विरोध की आवाजें

हाइलाइट्स :-

  • ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक मैच का बहिष्कार बढ़ा.
  • कई सितारे और पूर्व सैनिक मैच न देखने को कह रहे हैं.
  • महंगे टिकट नहीं बिके, बिक्री धीमी रही.
  • सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए.
  • मैच रद्द होने से ओलंपिक की उम्मीदों पर असर.

India-Pak Match Controvercy : भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला एशिया कप मैच इस बार सिर्फ खेल नहीं, भावनाओं का मामला बन गया है. देश के कई हिस्सों में इस मैच का विरोध हो रहा है. वजह है ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुई घटनाएं, खासकर पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद चार दिन तक चला संघर्ष, जिसमें कई लोगों की जान गई थी.

मैच की घोषणा जुलाई में की गई थी, और तब से ही सोशल मीडिया पर इसका विरोध शुरू हो गया था. अब जब मुकाबला होने में केवल एक दिन बचा है, तो #BoycottIndvsPak जैसे ट्रेंड दोबारा चर्चा में आ गए हैं. कई नामचीन हस्तियों और पूर्व सैनिकों ने खुले तौर पर मैच न देखने की अपील की है.

मैच के अपडेट्स न देने की मांग

अभिनेता सतीश शाह ने कहा कि सच्चे देशभक्तों को यह मैच नहीं देखना चाहिए और बस टीवी बंद कर देना चाहिए. वहीं मेजर मैनिक एम जोली (सेवानिवृत्त) ने इसे एक ऐसा मैच बताया जिसे दर्शकों से खाली स्टेडियम में खेला जाना चाहिए.

पूर्व सैन्य अधिकारियों ने भी मीडिया से अपील की है कि इस मैच को न दिखाएं, न ही स्कोर अपडेट करें. उनका कहना है कि भले ही सीधे बहिष्कार न हो सके, लेकिन चुपचाप इसे नजरअंदाज किया जा सकता है. उनका मानना है कि यह देश की जनता की भावनाओं के साथ खड़ा होने का समय है.

राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकारों ने भी जताया विरोध

राजनीतिक विश्लेषकों और पत्रकारों ने भी विरोध में अपनी राय रखी है. यशवंत देशमुख ने कहा कि वह ऐसे मैच न देखने का संकल्प ले चुके हैं और क्रिकेट प्रेमियों को अपनी सोशल मीडिया से हटाने का विचार भी किया है. राजनीतिक विचारक तहसीन पूनावाला ने कहा कि जब तक ऑपरेशन सिंदूर पूरी तरह खत्म नहीं होता, तब तक पाकिस्तान से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखा जाना चाहिए, क्रिकेट भी नहीं.

लेखक करण वर्मा ने भी यही बात दोहराई और सरकार से आग्रह किया कि इस मैच को अभी भी रोका जा सकता है, ताकि देश की भावनाओं का सम्मान हो सके.

सरकार की चुप्पी पर भी कई सवाल उठ रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब आम जनता और विपक्ष विरोध जता रहे हैं, तो किसी मंत्री का बयान न आना चौंकाने वाला है.

राजनीतिक गलियारों में भी बायकॉट की मांग तेज

राजनीति के स्तर पर भी इस मुद्दे ने हलचल मचा दी है. संसद में असदुद्दीन ओवैसी ने पहले ही यह सवाल उठाया था कि जब व्यापार, उड़ानें और पानी रोक दिया गया है, तो क्रिकेट की इजाजत कैसे दी जा सकती है. उन्होंने इसे दोहरे मापदंड का उदाहरण बताया.

कुछ प्रायोजकों ने भी कदम पीछे खींच लिए हैं. ईज माय ट्रिप जैसी कंपनियों ने मैच को प्रायोजित करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि वे ऐसे किसी भी आयोजन का हिस्सा नहीं बन सकते जो आतंक से जुड़े देश के साथ सामान्य रिश्ते दिखाता हो.

आम लोगों के बीच भी नाराजगी का माहौल है. कुछ ऑनलाइन प्रभावित करने वालों ने कहा है कि वे न केवल भारत-पाक मैच बल्कि पूरे टूर्नामेंट का बहिष्कार करेंगे.

हालांकि, सभी इस राय से सहमत नहीं हैं. सौरव गांगुली जैसे पूर्व खिलाड़ी मानते हैं कि खेल को राजनीति से अलग रखना चाहिए. लेकिन ऐसी राय फिलहाल अल्पसंख्यक लगती है.

टिकट बिक्री पर असर

इस विरोध का असर टिकटों की बिक्री पर भी पड़ा है. आमतौर पर भारत-पाक मुकाबलों के टिकट हाथों-हाथ बिक जाते हैं, लेकिन इस बार महंगे टिकटों को खरीदने वालों की संख्या बेहद कम रही है. केवल कुछ सस्ते टिकट ही बिक पाए हैं.

राजनीतिक दृष्टि से भी यह मामला अहम बन गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत मैच से हटता है, तो इसका असर 2036 ओलंपिक की मेज़बानी की कोशिशों पर पड़ सकता है. अंतरराष्ट्रीय खेल संगठनों को यह दिखाना ज़रूरी होता है कि कोई देश बड़े आयोजनों को सफलतापूर्वक करवा सकता है.

जैसे-जैसे मैच का दिन नजदीक आ रहा है, कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों ने मौजूदा टीम से कहा है कि वे अपने प्रदर्शन पर ध्यान दें. लेकिन यह मुकाबला अब सिर्फ एक खेल नहीं रहा. बहुत से भारतीयों के लिए यह राष्ट्रीय सम्मान और भावनाओं का प्रश्न बन गया है.


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