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राजस्थान को मिलेंगे नए बाघ, एमपी और महाराष्ट्र से 5 बाघ किए जाएंगे रिलोकेट

Tiger Relocation in Rajasthan : राजस्थान के दो प्रमुख टाइगर रिजर्व, मुकुंदरा हिल्स (MHTR) और रामगढ़ विषधारी (RVTR), में इस साल के अंत तक नए बाघों की एंट्री होने जा रही है. राज्य सरकार ने महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से कुल 5 बाघों को इन अभ्यारण्यों में लाने की योजना बनाई है. इसके लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) से मंजूरी मिल चुकी है. शिफ्ट किए जाने वाले बाघों में नर और मादा दोनों होंगे और रिलोकेशन अक्टूबर से दिसंबर के बीच की जाएगी. खास बात यह है कि महाराष्ट्र से आने वाले बाघों को एयरलिफ्ट करके लाया जाएगा.


एयरलिफ्टिंग की तैयारी और वायुसेना की मदद

बाघों को लाने के लिए वन विभाग भारतीय वायुसेना के विमानों की मदद लेने की योजना बना रहा है. यह दूसरा मौका होगा जब राजस्थान में किसी टाइगर को दूसरे राज्य से एयरलिफ्ट किया जाएगा. इससे पहले 2008 में रणथंभौर से सरिस्का में एक नर बाघ को वायुसेना की मदद से लाया गया था. बाघों की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए उन्हें हवाई मार्ग से कम समय में सुरक्षित पहुंचाने की योजना है. दोनों अभ्यारण्यों में बाघों के भोजन के लिए 150 चित्तीदार हिरण भी छोड़े जाएंगे, ताकि उन्हें नए वातावरण में ढलने में आसानी हो.


इनब्रिडिंग को रोकने की वैज्ञानिक पहल

बाघों को राजस्थान में लाने का एक बड़ा उद्देश्य यह भी है कि यहां बाघों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन उनकी नस्लें एक-दूसरे से काफी मिलती-जुलती हो गई हैं. इसे जैविक भाषा में अंतःप्रजनन (इनब्रिडिंग) कहा जाता है. नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) की रिसर्च में यह सामने आया था कि राजस्थान में देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा इनब्रेड बाघ पाए जाते हैं. इससे आने वाले वर्षों में बाघों में बीमारी और प्रजनन समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए बाहर से नए बाघों को लाना समय की ज़रूरत बन चुका है.


बाघों की सेहत और भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश

रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पूर्व फील्ड डायरेक्टर मनोज पराशर ने इस रिलोकेशन प्रोजेक्ट को सकारात्मक कदम बताया है. उन्होंने कहा कि अब तक मुकुंदरा और सरिस्का में जो बाघ लाए गए हैं, वे सभी रणथंभौर से गए हैं. बाहरी बाघों से कोई संपर्क नहीं रहा है, जिससे जैव विविधता सीमित हो गई है. अगर जल्द ही बाहर से बाघ नहीं लाए गए, तो आने वाले 20-30 सालों में राजस्थान के बाघ इनब्रिडिंग से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं. इसलिए ये रिलोकेशन न सिर्फ वन्यजीव संरक्षण की दिशा में, बल्कि बाघों के स्वस्थ भविष्य के लिए भी जरूरी कदम है.


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