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मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का नेमरा दौरा, ग्रामीण जीवन और प्रकृति से है गहरा नाता

Hemant Soren : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन मंगलवार को अपने पैतृक गांव नेमरा पहुंचे, जहां उन्होंने गांव की गलियों और पगडंडियों का निरीक्षण किया और ग्रामीणों से संवाद किया. इस दौरान उन्होंने गांव के विकास कार्यों की स्थिति का जायजा लिया और स्थानीय लोगों से समस्याएं व सुझाव सुने. मुख्यमंत्री का यह दौरा न सिर्फ प्रशासनिक था, बल्कि उनके पारिवारिक और भावनात्मक जुड़ाव को भी दर्शाता है.

नेमरा की मिट्टी से जुड़ाव

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन आज जब अपने पैतृक गांव नेमरा पहुंचे, तो वो दृश्य केवल एक राजनेता के दौरे का नहीं था, बल्कि एक बेटे के अपनी मिट्टी से संवाद का था. गांव की गलियों में सादगीपूर्ण अंदाज़ में टहलते हुए मुख्यमंत्री ग्रामीणों से मिलते रहे, उनकी बातें सुनते रहे और उनके साथ जुड़ने का प्रयास करते रहे,  उसी तरह जैसे कभी दिशोम गुरु शिबू सोरेन किया करते थे. यह जुड़ाव केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक भी है. हेमन्त सोरेन के भीतर आज भी अपने पिता की छवि और उनके विचारों की स्पष्ट झलक मिलती है.


गुरुजीकी परंपरा को आगे बढ़ाते जननेता

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन को लोग केवल एक प्रशासक के रूप में नहीं, बल्कि अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने वाले जननेता के रूप में भी देखते हैं. जिस प्रकार दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने आदिवासियों, वंचितों और ग्रामीण समाज की आवाज़ बनकर दशकों तक जनसेवा की, उसी सोच और समर्पण के साथ हेमन्त सोरेन आज सरकार चला रहे हैं. चाहे जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा की बात हो या गरीबों की समस्या को प्राथमिकता देने की— उनके हर फैसले और हर नीति में गुरुजी की सिखाई हुई नीतियों की झलक साफ दिखाई देती है. स्वयं मुख्यमंत्री कहते हैं, “मेरे हर निर्णय के पीछे पिता की सीख और जनता का विश्वास है.”


जल, जंगल और ज़मीन, झारखंड की आत्मा

मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा कि झारखंड की आत्मा उसके जल, जंगल और ज़मीन में बसती है. इन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण केवल पारिस्थितिकीय आवश्यकता नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है. मुख्यमंत्री ने बताया कि सरकार वन अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन, जल स्रोतों के पुनर्जीवन और भूमि पर अधिकार सुनिश्चित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है. उन्होंने यह भी कहा कि विकास का मतलब केवल सड़कें और इमारतें नहीं, बल्कि प्रकृति, परंपरा और लोगों के बीच संतुलन बनाए रखना भी है. “जब तक प्रकृति सुरक्षित नहीं, तब तक राज्य का भविष्य सुरक्षित नहीं,” उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा.


गांव की गोद में पला-बढ़ा नेता

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का जीवन बचपन से ही गांव, प्रकृति और समुदाय के बीच बीता है. उन्होंने कहा कि खेतों की हरियाली, नदियों की कलकल ध्वनि और पेड़ों की छांव में जो सुख बचपन में मिला, वही आज भी सबसे मूल्यवान है. उनका मानना है कि झारखंड का विकास तभी टिकाऊ होगा, जब वह पर्यावरण और पारंपरिक जीवनशैली के साथ तालमेल बिठाकर किया जाए. वे गांवों को राज्य के विकास की नींव मानते हैं और चाहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं, स्वावलंबन और सम्मान की भावना विकसित हो. “गांवों का सशक्तिकरण ही झारखंड की असली तस्वीर को उभार सकता है,” मुख्यमंत्री ने कहा.


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