
Supreme Court Orders : सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) अधिनियम के अंतर्गत अग्रिम जमानत केवल उन्हीं मामलों में दी जा सकती है, जहाँ पहली नजर में यह साबित हो जाए कि आरोपी के खिलाफ दर्ज आरोप इस कानून के दायरे में नहीं आते.
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने इस फैसले में कहा कि यदि कोर्ट को लगता है कि प्राथमिकी या शिकायत में दर्ज आरोप SC/ST अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध सिद्ध नहीं करते, तभी जमानत दी जा सकती है.
बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए फैसला
यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए दिया गया जिसमें एक आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी. आरोपी पर शिकायतकर्ता को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर सार्वजनिक रूप से अपमानित करने और हिंसक धमकी देने का आरोप था. अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता को केवल इसलिए अपमानित किया गया क्योंकि उसने विधानसभा चुनाव में आरोपी की पसंद के उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था.
साक्ष्यों की गहराई से परीक्षण की अनुमति नहीं
फैसले में यह भी कहा गया कि प्रथम दृष्टया अपराध की पुष्टि करने के लिए अदालतें साक्ष्य के गहराई से परीक्षण या तथ्यों की जांच नहीं कर सकतीं. अदालत को केवल FIR और दर्ज आरोपों के आधार पर यह तय करना होता है कि मामला बनता है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट संकेत मिला है कि SC/ST एक्ट के तहत मामलों में अग्रिम जमानत का दायरा सीमित रहेगा और केवल उन्हीं मामलों में जमानत मिलेगी जहां शुरुआती तथ्यों से आरोपों का समर्थन नहीं होता.
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