देश को एक सूत्र में बांधने में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान बहुत रहा था। भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. पटेल नवीन भारत के निर्माता थे। देश की आजादी के संघर्ष में उन्होंने जितना योगदान दिया, उससे ज्यादा योगदान उन्होंने स्वतंत्र भारत को एक करने में दिया। लेकिन वो आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं बन सके।
1947 में भारत की आजादी के बाद पहले तीन साल उप प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे थे। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि भारत की आजादी के बाद ये कैसे तय हुआ था कि सरदार पटेल नहीं बल्कि ज्वाहर लाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री चुने जाएंगे। जबकि जिस समय आजादी मिली, उस समय पटेल 71 साल के थे और नेहरू सिर्फ 56 साल के।
महात्मा गांधी ने नेहरू को चुना
सरदार पटेल ने अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को दरकिनार कर देश को हमेशा प्राथमिकता दी। उन्होंने अपनी पार्टी को एक रखा, देश की एकता से कभी समझौता नहीं किया। आज हम आपको बताएंगे वो चार वर्षों की कहानी, जब देश के दो कर्णधार सरदार पटेल और नेहरू अपने-अपने तरीके से देश का भविष्य तय करने में लगे थे।
कांग्रेस चाहती थी कि देश की कमान पटेल के हाथों में दी जाए क्योंकि वे जिन्ना से बेहतर मोलभाव कर सकते थे, लेकिन गांधी ने नेहरू को चुना। बापू ने देश की बागडोर सौंपने के लिए नेहरू को ही क्यों चुना? लेकिन इसका कारण जानने से पहले हमें ब्रिटिश राज के अंतिम वर्षों की राजनीति और गांधी के साथ नेहरू और पटेल के रिश्तों की बारीकियों समझना होगा।
गांधी और सरदार पटेल की पहली मुलाकात
वल्लभ भाई पटेल से गांधी की मुलाकात नेहरू से पहले हुई थी। पटेल और गांधी की उम्र में छह साल का फर्क था। इसलिए गांधी और पटेल के बीच दोस्ताना बर्ताव था। पटेल ने पहली बार गाँधी को गुजरात क्लब में 1916 में देखा था। कहते है शुरुआत में सरदार गांधी से बिल्कुल ही प्रभावित नहीं थे।
दरअसल महात्मा गांधी भी दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद देशभर में दौरा कर रहे थे। साल 1916 की गर्मियों में गांधी गुजरात क्लब में आए। उस समय पटेल अपने साथी वकील गणेश वासुदेव मावलंकर के साथ ब्रिज खेल रहे थे। यहीं पर इन दोनों महान हस्तियों की पहली मुलाकात हुई। लेकिन बहुत जल्द ही पटेल की गांधी का लेकर धारणा बदल गई।
चंपारण में गांधी के जादू का उन पर जबरदस्त असर हुआ। वो गांधी से जुड़ गए। खेड़ा का आंदोलन हुआ तो पटेल गांधी के और करीब आ गए। असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो पटेल अपनी दौड़ती हुई वकालत छोड़ कर पक्के गांधी भक्त बन गए
इसके बाद 1928 में बारदोली सत्याग्रह हुआ जोकि एक प्रमुख किसान आंदोलन था। पटेल इस आंदोलन के नेता बने और ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। इसी आंदोलन के बाद पटेल को गुजरात की महिलाओं ने सरदार की उपाधि दी। फिर 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में पटेल पहली और आखिरी बार पार्टी के अध्यक्ष चुने गऐ। तब वो पहली बार गुजरात के सरदार से देश के सरदार बन गए।
ऐसे मिला भारत को पहला प्रधानमंत्री
15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली। 1946 में ब्रिटिश सरकार ने कैबिनेट मिशन प्लान बनाया जिसके तहत कुछ अंग्रेज अधिकारियों को ये जिम्मेदारी मिली कि वे भारत की आजादी के लिए भारतीय नेताओं से बात करें। फैसला ये हुआ कि भारत में एक अंतरिम सरकार बनेगी।
तय हुआ था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री बनेगा। उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। अब उनके जाने का वक्त हो गया था। अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद जैसे कई बड़े नेता शामिल थे।
तब तक गांधी, नेहरू के हाथ में कांग्रेस की कमान देने का मन बना चुके थे। बता दें, उस समय कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थी। ऐसे में किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया था। ऐसे में ये तय था कि कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल के पास ज्यादा लोगों की सहमति है।
गांधी ने ऐसा क्यों किया?
इसके बाद आचार्य कृपलानी को कहना पड़ा, ‘बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं जवाहर लाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करता हूं।’ यह कहते हुए आचार्य कृपलानी ने एक कागज पर जवाहर लाल नेहरू का नाम खुद से प्रस्तावित कर दिया था। वहीं पटेल ने गाँधीजी के कहने पर अध्यक्ष पद से अपना नामांकन वापस लिया था।
इसके बाद गांधी को लगता है था नेहरू को सरकार का नेतृत्व करना चाहिए। मतलब नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहते थे गांधी। क्योंकि गांधी का मानना था कि नेहरू अंतराष्ट्रीय विषयों को पटेल के मुकाबले अच्छे से समझते हैं। वो इसमें अच्छी भूमिका निभा सकते हैं। वहीं दूसरा कारण ये भी था कि ”जवाहर दूसरे नम्बर पर आने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे। इसलिए अंतरराष्ट्रीय कामों के लिए नेहरू और राष्ट्र के कामों के लिए पटेल होंगे। दोनों गाड़ी अच्छी खींचेंगे।