Madhya Pradesh

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा विक्रमादित्य विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र बल्कि संस्कृति ज्ञान और आत्मगौरव का प्रतीक

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  • मुख्यमंत्री ने विक्रमादित्य विश्वविद्यालय का महत्व बताया
  • विश्वविद्यालय ज्ञान और संस्कृति का प्रतीक है
  • उन्होंने अपने विद्यार्थी अनुभव को खास बताया
  • विश्वविद्यालय ने प्रदेश को कई महान विभूतियाँ दीं
  • शिक्षा, ज्ञान और सेवा समाज को आगे बढ़ाती हैं

Madhya Pradesh : मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन में कहा कि अवंतिका ऐसी नगरी है जिसका न कोई आदि है और न कोई अंत. यह हर युग में, हर काल में जीवंत रही है. महाकाल की यह भूमि कालचक्र की साक्षी है, और यहाँ की हर धूल कण में संस्कृति और चेतना समाई हुई है.

साधना और संस्कृति आज भी सजीव हैं

पद्मविभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास जी द्वारा गाई गई विक्रमादित्य की गाथा आज भी हमारे विश्वविद्यालय के जीवन में सजीव है. विक्रम विश्वविद्यालय का शिलालेख केवल पत्थर नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और आत्मगौरव का प्रतीक है. विक्रमादित्य काल की परंपरा इस विश्वविद्यालय में आज भी ज्ञान और साधना के रूप में जीवंत है. यह विश्वविद्यालय केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सम्राट विक्रमादित्य की भावना का प्रतीक है.

मैं भी इसी विश्वविद्यालय का विद्यार्थी रहा हूँ

मैं भी इसी विश्वविद्यालय का विद्यार्थी रहा हूँ, आज मुख्यमंत्री के रूप में उसी भूमि पर खड़ा होना मेरे जीवन का अत्यंत पुण्य क्षण है. यह अनुभव मेरे लिए करवा चौथ की पूर्णिमा जैसा है- जैसे सुहागिनें चाँद देखकर अपने सुहाग की आयु बढ़ाती हैं, वैसे ही मैं विश्वविद्यालय को देखकर अपनी प्रेरणा और उत्साह बढ़ा हुआ महसूस कर रहा हूँ.

विक्रम विश्वविद्यालय ने प्रदेश को अनेक विभूतियाँ दी हैं. डॉ. शंकर दयाल शर्मा, डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ और डॉ. विष्णु श्रीधर वाकड़कर जैसी प्रतिभाएँ इसी धरती से निकली हैं. दो हजार वर्ष बाद भी विक्रमादित्य का जीवन ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह कल की ही बात हो.

देश को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे युग के सच्चे विक्रमादित्य हैं, जिन्होंने चुनौतियों का सामना कर देश को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई. जब पूरा देश महामारी में भय में था, तब हमारे डॉक्टर, पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी देवदूत बनकर सेवा कर रहे थे, जो हमारी जीवित मानवता का सजीव प्रमाण है.

यह विश्वविद्यालय ज्ञान, संस्कृति और कर्म की त्रिवेणी है, जहाँ शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि जीवन का मार्ग बनती है. विक्रमादित्य की परंपरा हमें सिखाती है कि शासन, ज्ञान और सेवा- जब ये तीनों एक साथ मिलते हैं- तब समाज प्रगतिशील बनता है. आज का यह अवसर मेरे जीवन का एक नया प्रवेश दिवस है, जैसे मैं पुनः विद्यार्थी बनकर इस विश्वविद्यालय के आँचल में लौट आया हूँ.

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