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महिलाओं के वोट बैंक ने बदली राजनीति की दिशा, विधेयक को मिला पार्टियों का समर्थन

बीते एक दशक में आधी आबादी के मजबूत वोट बैंक में बदलने की घटना ने राजनीति की रवायत में बड़ा बदलाव आया है। इसका गवाह महिला आरक्षण विधेयक है। इस विधेयक पर ओबीसी कोटे का सवाल पीछे छूट रहा है। बिल में ओबीसी कोटा नहीं होने के कारण कभी इसके विरोध में बिल फाड़ने वाले, माइक तोड़ने वाले और विधेयक के बहाने परकटी महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में भरने की साजिश का आरोप लगाने वाले दल भी इस विधेयक के समर्थन में आ गए हैं। ओबीसी कोटे का सवाल जो पहली प्राथमिकता थी वह सुझाव के तौर पर सामने आ रहा है।

गौरतलब है कि जिस महिला आरक्षण बिल के सर्वसम्मति से पारित होने के आसार बन रहे हैं, उसकी राह में रोड़ा जदयू, राजद, सपा जैसे दलों ने लगाए थे। देवगौड़ा सरकार से ले कर मनमोहन सरकार तक इन्हीं दलों ने ओबीसी कोटा तय करने की मांग को ले कर इस विधेयक को कानूनी जामा नहीं पहनने दिया। बदली परिस्थितियों में ये दल अब इस मांग को सुझाव के तौर पर पेश कर रहे हैं। मोटे तौर पर इन सभी दलों ने विधेयक का समर्थन करने की घोषणा की है।

27 साल पहले देवगौड़ा सरकार से मनमोहन सरकार तक ओबीसी कोटा की मांग ही इस विधेयक की राह में मुख्य रोड़ा बनी। साल 2010 में जब इस विधेयक को पेश किया गया, तब इसकी प्रतियां फाड़ी गईं। वरिष्ठ नेता शरद यादव ने आरोप लगाया कि सरकार परकटी महिलाओं मतलब सामान्य वर्ग की महिलाओं को सदन का प्रतिनिधित्व देना चाहती है। तब राजद, सपा ने ओबीसी कोटा तय किए बिना इसे पारित करने का विरोध किया। मगर अब यही पार्टियां समर्थन में हैं।

अब विधेयक को रोकना सरल नहीं होगा

दरअसल, कांग्रेस, बीजेडी, एनसीपी, टीएमसी समेत ज्यादातर दलों ने विधेयक का बिना शर्त समर्थन करने की घोषणा की है। महिला वर्ग अब बड़ा वोट बैंक है। कोई दल नहीं चाहेगा कि उस पर महिला वर्ग की अनदेखी का आरोप लगे। विधेयक में ओबीसी के इतर एससी-एसटी के लिए आरक्षण का प्रावधान है। इससे दलित-आदिवासी की राजनीति करने वाले दलों के सामने विरोध का कोई कारण नहीं बचा है।

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