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“गांधीवादी या राष्ट्रविरोधी?” सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी से उठे सवाल – क्या सरकार ने लद्दाख की आवाज को कुचल दिया?

Sonam Wangchuk Ladakh Protest: लद्दाख के जाने-माने इंजीनियर, नवाचारक और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने पूरे देश में नई बहस छेड़ दी है — क्या सरकार ने एक गांधीवादी आवाज़ को दबाया है या फिर यह आंदोलन वाकई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया था?


NSA के तहत गिरफ्तारी

26 सितंबर 2025 को वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया. प्रशासन का आरोप है कि उन्होंने इस महीने की शुरुआत में लद्दाख में हुए एक विरोध प्रदर्शन के दौरान “भीड़ को उकसाया”, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी.

दरअसल, वांगचुक ने 10 सितंबर 2025 से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की थी, जिसमें वे लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule) में शामिल करने की मांग कर रहे थे — यह वही वादा था जो, उनके अनुसार, 2020 के आम चुनावों के दौरान किया गया था.

हालांकि आंदोलन शुरू में शांतिपूर्ण था, लेकिन कुछ दिनों बाद प्रदर्शनकारियों ने कथित रूप से भाजपा कार्यालय पर हमला कर आग लगा दी. पुलिस की जवाबी कार्रवाई में चार लोगों की मौत हो गई. प्रशासन ने इसके लिए वांगचुक के “उकसाऊ बयानों” को जिम्मेदार ठहराया, जबकि उनके समर्थक इस आरोप को पूरी तरह निराधार बताते हैं और इसे “विरोध की आवाज़ को कुचलने की कोशिश” कहते हैं.


कौन हैं सोनम वांगचुक?

ज्यादातर लोग सोनम वांगचुक को थ्री इडियट्स फिल्म के किरदार फुन्सुख वांगडू  के ज़रिए जानते हैं, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है.

वे रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हैं, SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh)  के संस्थापक हैं, और उन्होंने आइस स्तूपा परियोजना जैसी पर्यावरणीय नवाचारों के ज़रिए वैश्विक पहचान बनाई है.

वांगचुक पिछले एक दशक से लद्दाख की जनजातीय और पर्वतीय आबादी की आवाज़ रहे हैं. वे हमेशा विकास को स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण के संतुलन के साथ जोड़ने की बात करते हैं.


छठी अनुसूची की मांग क्यों?

वांगचुक का आंदोलन लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाने की मांग पर केंद्रित है. यह व्यवस्था आदिवासी बहुल क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता (autonomy) देती है. फिलहाल भारत में यह सुविधा केवल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा को प्राप्त है.

इन राज्यों में स्वायत्त जिला परिषदें (Autonomous District Councils) बनाई जाती हैं, जिन्हें भूमि, संस्कृति, वन और संसाधनों पर कानून बनाने के अधिकार होते हैं.

लेकिन लद्दाख के मामले में स्थिति अलग है. यह क्षेत्र चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं से सटा हुआ है — जो अत्यंत संवेदनशील और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाका है.
केंद्र सरकार का तर्क है कि ऐसी सीमा रेखा पर स्थानीय स्वायत्तता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकती है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,

“पूर्वोत्तर राज्यों की स्वायत्तता सांस्कृतिक है, पर लद्दाख का मामला सामरिक (strategic) है. यहां स्वायत्तता का मतलब सुरक्षा पर असर डालना हो सकता है.”


समर्थन और विरोध दोनों

मानवाधिकार संगठनों और कई विपक्षी नेताओं ने वांगचुक की गिरफ्तारी की निंदा की है. उनका कहना है कि एक गैर-हिंसक पर्यावरणविद् पर NSA जैसे कठोर कानून का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए खतरनाक उदाहरण है.

वांगचुक की पत्नी ने उनकी गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. कोर्ट ने इस पर जोधपुर सेंट्रल जेल प्रशासन को नोटिस जारी किया है, जहां फिलहाल उन्हें रखा गया है.

इसी बीच लद्दाख में विरोध प्रदर्शन जारी हैं, जहां लोग तख्तियां लेकर नारे लगा रहे हैं — “We Want Statehood, Not Silence.”


देशभक्ति बनाम असहमति

लद्दाख का यह संघर्ष अब सिर्फ सोनम वांगचुक का नहीं रह गया है. यह सवाल अब पूरे देश के सामने है — क्या असहमति की आवाज़ को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दबाया जा सकता है?

वांगचुक के समर्थकों के लिए वे देशभक्त और जननायक हैं, जो अपने लोगों और पर्यावरण की रक्षा के लिए खड़े हुए. वहीं सरकार के लिए वे ऐसे व्यक्ति बन गए हैं जिनकी बातें सीमावर्ती नीति और राष्ट्रीय हितों को प्रभावित कर सकती हैं.


आगे क्या?

मामला अब अदालत में है, लेकिन इस गिरफ्तारी ने लद्दाख की आवाज़ को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचा दिया है.

सवाल यह नहीं है कि सोनम वांगचुक निर्दोष हैं या दोषी — सवाल यह है कि क्या एक लोकतंत्र में शांति और विरोध साथ रह सकते हैं?

जिस व्यक्ति ने दशकों तक पहाड़ों में शिक्षा, नवाचार और पर्यावरण की मिसाल कायम की, आज वही “राष्ट्र-विरोधी” कहे जा रहे हैं. आने वाला वक्त तय करेगा — इतिहास उन्हें खतरा मानेगा या प्रेरणा.

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