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सांसद मनोज झा ने कहा, न हो सब कुछ सिर्फ ‘ठाकुर’ का

ओम प्रकाश बाल्मीकि की एक कविता। यकीन मानिए इसको संज़ीदगी से पढ़ते ही आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। लेकिन आखिर आज हम ये कविता आपको क्यों पढ़ा रहे हैं? हम यह बात भी बताएंगे लेकिन पहले आप कविता पढ़िए।

चूल्हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का।

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का।

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फसल ठाकुर की।

कुआँ ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत-खलिहान ठाकुर के

गली मोहल्ले ठाकुर के

तो फिर अपना क्या ?

गाँव ?

शहर ?

देश ?

दरअसल राजेडी से राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा ने नारी शक्ति वंदन विधेयक पर अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात के लिए ओम प्रकाश बाल्मीकि की इस कविता का सहारा लिया। मोटे तौर पर समझें तो उन्होंने इस विधेयक में एससी/एसटी और ओबीसी का पक्ष रखने के लिए इस कविता का सहारा लिया।

‘क्या फिर से संसद पहुंच सकी भगवतिया देवी’

इस दौरान मनोज झा ने कहा कि लालू प्रसाद यादव ने एक पत्थर तोड़ने वाली महिला भगवतिया देवी को संसद तक पहुंचाया। गया से सांसद रही इस महिला के बाद क्या दोबारा कोई भगवतिया देवी संसद पहुंच सकी। उन्होंने कहा हमारी व्यवस्थाएं संवेदन शून्य हैं इसलिए ऐसा दोबारा नहीं हो सका। मैं सभी पार्टी से अपील करता हूं कि व्यवस्था बदलें।  उन्होंने मांग की कि बिल में एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग को सम्मलित किया जाए। नहीं तो हम ऐतिहासिक गुनाहगार होंगे।

‘सरनेम में बहुत कुछ है’

उन्होंने कहा कि हमारे सरनेम का हमको विशेषाधिकार मिल जाता है लेकिन एससी, एसटी और ओबीसी को ये नहीं मिलता। जरूरी है कि इस विधेयक में एससी/एसटी और ओबीसी के लिए कोटा हो।

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