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POCSO केस में ट्रायल कोर्ट ने दिखाया अमानवीय दृष्टिकोण- कर्नाटक HC

karnataka High Court: कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में 8 वर्षीय लड़की के यौन उत्पीड़न से जुड़े मामले में सबूतों से निपटने में “अमानवीय” और “असंवेदनशील” दृष्टिकोण दिखाने के लिए ट्रायल कोर्ट के एक न्यायाधीश की निंदा की। न्यायमूर्ति हंचेट संजीवकुमार ने आरोपी वेंकटेश को बरी करने के फैसले को रद्द कर दिया और उसे नाबालिग के गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने आरोपी को बरी करने वाले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को साक्ष्यों से निपटने के तरीके में “अत्यधिक असंवेदनशील” और “व्यावसायिकता की कमी” पाया।

karnataka High Court: जज को प्रक्षिक्षण की सिफारिश की

कोर्ट ने आदेश में लिखा, “POCSO कोर्ट के जज, जिन्होंने फैसला सुनाया है,  उनको इस प्रकार के मामलों से निपटने के लिए कर्नाटक न्यायिक अकादमी में कुछ प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इसलिए, अदालत फैसला सुनाने वाले POCSO कोर्ट के जज को कर्नाटक न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण लेने की सिफारिश कर रही है” नाबालिग पीड़िता के साथ फरवरी 2018 में उसके घर के बाहर यौन उत्पीड़न किया गया था। आरोपी के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

karnataka High Court: दिसंबर 2020 में किया था बरी

बता दें कि दिसंबर 2020 में, ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया कि किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की गई थी और डॉक्टर के सबूतों से पता चला कि पीड़ित को कोई चोट नहीं आई थी। बाद में इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने कहा कि POCSO कोर्ट ने सबूतों की जांच बहुत तकनीकी रूप से की थी, न कि सही तरीके से। बेंच ने सवाल किया कि ट्रायल कोर्ट POCSO मामले में चश्मदीदों के बयान पर कोर्ट की दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाया।

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