
Meat quality sensor : बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिकों ने मांस की गुणवत्ता पता लगाने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. यह तकनीक पूरी तरह से प्लांट बेस्ड सेंसर किट पर आधारित है, जो पैकेट बंद और ताजा मांस की ताजगी कुछ ही मिनटों में पता लगा सकती है. इन किट्स की कीमत एक रुपये से भी कम रखी गई है, जिससे यह आम उपभोक्ता के लिए सुलभ होगी.
पांच साल के शोध के बाद बनी किट
आईवीआरआई की लाइवस्टॉक प्रोडक्ट्स टेक्नोलॉजी विभाग के वैज्ञानिक डॉ. सुमन तालुकदार के अनुसार, बाजार में उपलब्ध पैकेटबंद मांस की गुणवत्ता पर अक्सर संदेह होता है. मौजूदा जांच किट्स में रासायनिक तत्व होते हैं जो खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए 2017 में शोध शुरू किया गया ताकि एक सुरक्षित और प्राकृतिक किट बनाई जा सके. पांच साल की मेहनत के बाद देश की पहली प्लांट बेस्ड इंटेलिजेंट पैकेजिंग सेंसर किट तैयार की गई है, जिसे पैकेटबंद मांस पर लगाया जाएगा.
यह सेंसर खराब मांस के संपर्क में आने पर रंग बदलता है. यदि किट का रंग लाल से पीले रंग में बदलता है, तो इसका मतलब मांस खराब होने के कगार पर है. हल्का हरा रंग आने पर भी सावधानी बरतनी चाहिए. इससे ग्राहक खरीदारी से पहले मांस की ताजगी का सही अंदाजा लगा सकते हैं.
ताजा मांस की जांच के लिए भी किट तैयार
ताजा मांस की जांच के लिए भी एक अलग किट विकसित की गई है, जो कागज के स्ट्रिप जैसी होती है. इसे इस्तेमाल करने के लिए मांस का थोड़ा हिस्सा पानी में पीसकर घोल बनाना होता है, जिसमें सेंसर स्ट्रिप डाली जाती है. यदि किट का रंग हरा रहता है तो मांस ताजा है, और नीला हो जाने पर मांस खराब माना जाता है.
आईवीआरआई के निदेशक डॉ. त्रिवेणी दत्त के मार्गदर्शन में इस शोध को व्यावसायिक रूप देने की तैयारी की जा रही है. खास बात यह है कि ये किट फूलों, पत्तियों और फलों से निकाले गए प्राकृतिक रंगों से बनाई गई हैं, इसलिए उनकी लागत बहुत कम है.
चूंकि देश में चिकन मांस की खपत करीब 50 प्रतिशत है, इसलिए इस किट का परीक्षण खासतौर पर चिकन पर किया गया है. इस तकनीक से आम लोगों को मांस की गुणवत्ता आसानी से जांचने का मौका मिलेगा, जिससे भोजन सुरक्षित रहेगा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम कम होंगे.
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