
अहम बातें एक नजर में:
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महोबा जिले की महिला की याचिका खारिज की.
- अदालत ने कहा कि लंबे समय तक सहमति से बने रिश्तों में शादी का वादा दुष्कर्म का आधार नहीं होगा.
- महिला ने अपने सहकर्मी लेखपाल पर शादी का झूठा वादा करके दुष्कर्म का आरोप लगाया था.
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि महिला जानती है कि शादी सामाजिक कारणों से संभव नहीं है, फिर भी लंबे समय तक सहमति से संबंध बनाए रखती है, तो इसे कानून की नजर में दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता.
- यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल है, जहां रिश्ते टूटने के बाद आरोप लगाए जाते हैं.
Allahabad HC rape verdict : कभी-कभी रिश्तों की जटिलताएँ अदालत तक पहुंच जाती हैं, और तब कानून की नजर से हर पहलू पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसा ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसने न केवल एक महिला की याचिका को खारिज किया बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि लंबे समय तक आपसी सहमति से बने संबंधों में शादी का वादा हमेशा दुष्कर्म का आधार नहीं बन सकता. इस फैसले ने उन मामलों के लिए मिसाल कायम की है, जहां रिश्तों के टूटने के बाद आरोप लगाए जाते हैं. आइए जानते हैं इस विवादित मामले की पूरी कहानी और अदालत का निर्णायक संदेश….
सहमति से बने रिश्तों में दुष्कर्म नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि कोई महिला लंबे समय तक अपनी सहमति से प्रेम संबंध में रहती है, तो बाद में बने शारीरिक संबंधों को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता. यह फैसला न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने महोबा जिले की एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया. महिला ने अपने सहकर्मी लेखपाल पर शादी का झूठा वादा करके दुष्कर्म का आरोप लगाया था. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर महिला यह जानती है कि सामाजिक कारणों से शादी संभव नहीं है, फिर भी वह वर्षों तक सहमति से संबंध बनाए रखती है, तो इसे कानून की नजर में दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता.
पीड़िता के आरोप और कानूनी लड़ाई
यह पूरा मामला महोबा के चरखारी थाना क्षेत्र का है. महिला ने आरोप लगाया था कि 2019 में उसके सहकर्मी लेखपाल ने एक जन्मदिन की पार्टी के दौरान उसे नशीला पदार्थ पिलाकर उसका यौन शोषण किया और इसका वीडियो भी बना लिया. पीड़िता के अनुसार, होश में आने पर आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया, लेकिन चार साल बाद जातिगत कारणों का हवाला देकर शादी से इनकार कर दिया. जब पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने एससी/एसटी विशेष अदालत में परिवाद दायर किया. जब निचली अदालत ने भी याचिका खारिज कर दी, तो उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
आरोपी पक्ष की दलीलें
आरोपी लेखपाल के वकील ने अदालत में बताया कि पीड़िता ने पहले खुद ही पुलिस को लिखित में शिकायत वापस ले ली थी. वकील ने आगे दलील दी कि यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब आरोपी ने पीड़िता से अपने उधार दिए हुए दो लाख रुपये वापस मांगे. वकील ने आरोप लगाया कि पैसे वापस मांगने पर ही महिला ने बदला लेने की भावना से यह फर्जी परिवाद दायर किया. इन दलीलों ने मामले को एक नया आयाम दिया और कोर्ट के सामने आरोपी के पक्ष को भी मजबूत किया.
अदालत का अंतिम निर्णय और संदेश
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट ने पीड़िता की याचिका को खारिज कर दिया. अपने निर्णय में अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से संबंध थे और शारीरिक संबंध दोनों की सहमति से बने थे. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि केवल शादी का वादा करना हमेशा दुष्कर्म नहीं होता, खासकर तब जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से वर्षों तक साथ रहते हैं. यह फैसला उन मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है, जहाँ रिश्ते टूटने के बाद आरोप लगाए जाते हैं. इस फैसले से यह संदेश गया है कि रिश्ते की जटिलताओं को कानूनी रूप से परखते समय सभी तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है.
प्रयागराज से संवाददाता सौरभ मिश्रा की रिपोर्ट