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संगरूर सांसद गुरमीत सिंह मीत हेयर ने संसद में उठाया दवाइयों की बढ़ती कीमतों का मुद्दा

Gurmeet Singh Meet Hayer : आम आदमी पार्टी के संगरूर से लोकसभा सांसद गुरमीत सिंह मीत हेयर ने संसद के शून्य काल के दौरान देश में दवाइयों की बढ़ती बेतहाशा कीमतों का मुद्दा उठाकर आम जनता की एक गंभीर समस्या की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि एक समान रासायनिक संरचना वाली दवाइयों की अधिकतम कीमत निर्धारित की जाए, ताकि मरीजों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध हो सकें. यह मुद्दा न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता से जुड़ा है, बल्कि देश की आर्थिक रूप से कमजोर आबादी के लिए भी एक बड़ा मसला है.


शून्य काल में उठाया स्वास्थ्य से जुड़ा अहम मुद्दा

संसद के शून्य काल के दौरान, जब सांसदों को अपने क्षेत्र की महत्वपूर्ण समस्याओं को उठाने का अवसर मिलता है, मीत हेयर ने दवाइयों की कीमतों में भारी असमानता और मुनाफाखोरी का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि यह समस्या देश के हर कोने में लोगों को प्रभावित कर रही है, खासकर उन मरीजों को जो उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं. सांसद ने इस मुद्दे को उठाकर सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग की, ताकि दवाइयों की कीमतों में पारदर्शिता और नियंत्रण सुनिश्चित हो सके.


DPCO का नियंत्रण सीमित

मीत हेयर ने अपने संबोधन में ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO), 2013 का जिक्र किया, जिसके तहत कुछ आवश्यक दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण लागू किया गया है. हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा कि यह नियंत्रण अपर्याप्त है, क्योंकि उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग जैसी आम बीमारियों के लिए इस्तेमाल होने वाली कई दवाएं इस दायरे से बाहर हैं. इन बीमारियों के लिए दवाइयां देश में सबसे ज्यादा उपयोग की जाती हैं, लेकिन उनकी कीमतों पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं है, जिसके चलते मरीजों को भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है.


एक ही दवा, कई कीमतें

सांसद ने एक चिंताजनक तथ्य सामने रखा कि एक ही रासायनिक संरचना वाली दवाएं विभिन्न दवा कंपनियों द्वारा अलग-अलग कीमतों पर बेची जा रही हैं. उदाहरण के तौर पर, उन्होंने बताया कि एक दवा, जिसका उत्पादन लागत केवल 3 रुपये है, उसे कोई कंपनी 10 रुपये में बेचती है, तो कोई 50 रुपये में. यह कीमतों में भारी अंतर न केवल मरीजों के लिए आर्थिक रूप से बोझिल है, बल्कि यह दवा उद्योग में मुनाफाखोरी को भी उजागर करता है. मीत हेयर ने इस असमानता को “अनुचित और अन्यायपूर्ण” करार देते हुए कहा कि यह स्थिति आम जनता के साथ धोखा है.


मुनाफाखोरी की गंभीर समस्या

उन्होंने संसद में यह भी उजागर किया कि दवाइयों की कीमतों में असमानता के कारण दवा कंपनियां 300 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक का मुनाफा कमा रही हैं. यह मुनाफाखोरी खासकर उन मरीजों को प्रभावित करती है जो लंबे समय तक दवाइयों पर निर्भर रहते हैं. मीत हेयर ने कहा कि यह पूरे देश की एक साझी समस्या है, जो न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को प्रभावित कर रही है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दवाइयों की कीमतों में इस तरह की मनमानी को रोकने के लिए सरकार को तुरंत कदम उठाने चाहिए.


सरकार से कीमत नियंत्रण की मांग

मीत हेयर ने केंद्र सरकार से अपील की कि एक समान रासायनिक संरचना वाली दवाइयों की अधिकतम कीमत तय की जाए. उन्होंने तर्क दिया कि ऐसा करने से दवा कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लगेगा और मरीजों को सस्ती दवाएं मिल सकेंगी. यह कदम न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक किफायती बनाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि गरीब और मध्यम वर्ग के लोग बिना आर्थिक तनाव के अपनी दवाइयां खरीद सकें.


जनता को राहत की उम्मीद

संगरूर सांसद के इस मुद्दे को संसद में उठाने की कई सामाजिक संगठनों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने सराहना की है. यह मांग लंबे समय से चली आ रही उस मांग को बल देती है, जिसमें दवाइयों की कीमतों में पारदर्शिता और नियंत्रण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाती है, तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है.


आगे की राह

मीत हेयर का यह कदम स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक समावेशी और सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है. दवाइयों की कीमतों में नियंत्रण न केवल मरीजों के लिए आर्थिक राहत लाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि दवा उद्योग में अनैतिक मुनाफाखोरी पर लगाम लगे. अब सभी की निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी हैं कि वह इस मांग पर क्या कदम उठाती है. यदि सरकार इस मुद्दे पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करती है, तो यह देश के करोड़ों मरीजों के लिए एक बड़ी राहत साबित हो सकता है.


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