Advertisement

Navratri Day-6: माता कात्यायनी की उपासना और पूजा आराधना विधि

Share

मंत्र

Advertisement

या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

Advertisement

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

माता कात्यायनी की उत्पत्ती और महत्व

शास्त्रों के अनुसार शारदीय नवरात्र के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। माता कात्यायनी को भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है। माता कात्यायनी का रूप सबसे सुंदर है और बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में इन्हें छठ मैया के रूप में भी जाना जाता है।

माता का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है और उनकी चार भुजाएं हैं। प्रत्येक भुजा में माता ने तलवार, कमल, अभय मुद्रा और वर मुद्रा धारण किया है। माता कात्यायनी को लाल रंग पसंद है। किंवदंतियों के अनुसार महर्षि कात्यायन की तपस्या के बाद माता कात्यायनी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। मां दुर्गा इन्हीं के रूप में महिषासुर का वध कर उसके आतंक से देव और मनुष्यों को भय मुक्त किया था।

देवी के छठवे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी की थी। ऐसी कथा है कि ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए देवी के इस स्वरूप की पूजा की थी। देवी भागवत, मार्कण्डेय और स्कंद पुराण में देवी कात्यायनी की कथा मिलती है। पुराणों में बताया गया है कि ऋषि कात्यायन माता के भक्त थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इन्होंने माता की तपस्या की और उनसे वरदाना मांगा की आप मुझे पुत्री रूप में प्राप्त हों। इस बीच महिषासुर का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। उसने देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया था।

देवाताओं के क्रोध से एक तेज प्रकट हुआ जो कन्या रूप में था। उस तेज ने ऋषि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। ऋषि जानते थे कि, माता ही वरदान के कारण पुत्री रूप में उनके घर प्रकट हुई हैं। ऋषि ने देवी की प्रथम पूजा की और वह देवी कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण कात्यायनी कहलाईं।

पूजा आराधना विधि

नवरात्रि के छठे दिन सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद कलश पूजा करें और इसके बाद मां दुर्गा की और माता कात्यायनी की पूजा करें। पूजा प्रारंभ करने से पहले मां को स्मरण करें और हाथ में फूल लेकर संकल्प जरूर लें। इसके बाद वह फूल मां को अर्पित करें। फिर कुमकुम, अक्षत, फूल आदि और सोलह श्रृंगार माता को अर्पित करें। उसके बाद उनके प्रिय भोग शहद को अर्पित करें और मिठाई इत्यादि का भी भोग लगाएं। फिर जल अर्पित करें और घी के दीपक जलाकर माता की आरती करें। आरती से पहले दुर्गा चालीसा व दुर्गा सप्तशती का पाठ करना ना भूले।

मां कात्यायनी की पूजा करते समय नारियल, कलश, गंगाजल, कलावा, रोली, चावल, चुन्‍नी, शहद, अगरबत्ती, धूप, दीया और घी आदि का प्रयोग करना चाहिए। मान्यता है कि मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए 3 से 4 पुष्प लेकर माता का मंत्र- कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः का जप 108 बार करना फलदायी होता है। मंत्र जप के बाद उन्हें पुष्प अर्पित करें और मां के सामने हाथ-जाड़कर प्रार्थना करें।

ये भी पढ़ें- Jharkhand: पलामू जिले में दुर्गा पूजा की अनोखी परंपरा, बनाया गया 20 फिट लंबा और 15 फिट चौड़ा रंगोली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *