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Maharana Pratap Death Anniversary: मुगलों के आगे घुटने टेकने से किया इनकार, घास की रोटी खाई लेकिन स्वाधीनता को चुना

कुछ वीर सिपाही हमेशा इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अमर छाप छोड़ जाते हैं। जब बात देश की आती है तो मृत्यु से भी नहीं घबराते। भारत मां के वीर सिपाहियों में से एक थे महाराणा प्रताप।

महाराणा प्रताप के नाम से ही उनके दुश्मनों का गला सूखने लग जाता था। जब मुगलों के आगे आधा हिंदुस्तान नत्मस्तक हो गया था तब महाराणा प्रताप ने ही आरामदायक गुलामी से बेहतर कष्टकारी स्वाधीनता को चुना।

भीलों का कीका

महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई, 1540 को हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह और माता जयवंत कंवर थी। कहा जाता है कि प्रताप लगभग 200 किलो का हथियार लेकर चलते थे, जिसमें तलवार, कवच, भाला शामिल थे। महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बीता,भीलों के साथ ही वे युद्ध कला सीखते थे , भील अपने पुत्र को कीका कहकर पुकारते है इसलिए भील महाराणा को कीका नाम से पुकारते थे।

गोगुन्दा में राज्याभिषेक

महाराणा के पिता उदय सिंह की दो पत्नियां थी, दूसरी पत्नी धीरबाई थी। धीरबाई चाहती थी कि उनके बेटे जगमाल को महाराणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बनाया जाए। महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी धोषित होने के बाद जगमाल अकबर से संधि कर लेता है। 28 फरवरी, 1572 को महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक में गोगुन्दा में हुआ था, बाद कुंभलगढ़़ दुर्ग में पूरे विधिविधान के साथ प्रताप का राज्याभिषेक किया गया।

हल्दीघाटी का युद्ध

18 जून 1576  को महाराणा और मुगलों के बीच हल्दीघाटी की अभूतपूर्व लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में महाराणा की ओर से 3,000 घुड़सवारों और 400 भील लड़ रहे थे। वहीं मुगलों की ओर से 10,000 की सेना लड़ाई में उतरी थी, जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह कर रहे थे। इस लड़ाई में मेवाड़ के 1600 सैनिकों की मौत हुई थी, वहीं मुगलों के 6000-8000 सैनिक मारे गए थे। लगभग 12 वर्षों के संघर्षों के बाद महाराणा ने अपना राज्य विस्तार कर लिया।

धनुष की डोर खींचते वक्त लगी चोट

19 जनवरी 1597 को राजधानी चावन्ड में धनुष की डोर खींचते वक्त उनकी आंत में चोट लगने से उनकी मौत हुई थी। 57 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी 1597 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी।

इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा प्रताप के डर से अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर में बसा ली थी। राणा के मरणोपरांत अकबर ने वापस अपनी राजधानी आगरा बसाई थी।  

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