
उत्तराखंड में पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े तीज-त्योहारों की लंबी सूची है। यहां गढ़वाल और कुमाऊं में हर माह कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। लेकिन पशुपालन और प्रकृति के अनूठे मिलन से जुड़े “घी संक्रान्द” और उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल का “बटर फेस्टिवल” दुनिया के अनोखे और पौराणिक त्योहारों में अलग स्थान रखते हैं। आज यह दोनों त्योहार उत्तराखंड में बड़े धूमधाम से मनाए गए।
पर्यटकों ने जमकर खेली होली
आपको बता दें कि दयारा बुग्याल (पहाड़ में घास के मैदान) में प्रसिद्ध अढूंडी उत्सव (बटर फेस्टिवल) का भव्य रूप से आयोजन हुआ। इस आयोजन में स्थानीय ग्रामीणों के साथ पर्यटकों ने भी मक्खन और मट्ठा की होली का आनंद लिया। इस दौरान ग्रामीणों ने जमकर लोक नृत्य किया।
समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले में स्थित दयारा बुग्याल (मखमली घास का मैदान) में प्रसिद्ध अढूंडी उत्सव (बटर फेस्टिवल) गुरुवार को धूमधाम से मनाया गया। परंपरा के अनुसार इस लोक उत्सव में मक्खन-मट्ठा की होली खेलने के साथ ही प्रकृति, इष्ट देवता, राधा कृष्ण की पूजा की गई।
दयारा पहुंचे पर्यटक और स्थानीय ग्रामीणों ने मखमली बुग्याल में मक्खन की होली खेलकर इन खास क्षणों को यादगार बनाया। ये अनोखा पर्व को मनाने सुबह-सुबह बड़ी संख्या में पहुँचे थे। राधा कृष्ण ने जैसे ही मटकी फोड़ी बुग्याल में मोजूद लोग इस पर्व में झूम पड़े।
इस पर्व की तैयारी ग्रामीण एक माह से करते है। ग्रामीणों का यह पर्व प्रकृति से प्रेम को भी दर्शाता है। इस पर्व पर जो पर्यटक यहां पहुँचा वह भी मक्खन की इस अनूठी होली में रंग गया। ग्रीष्मकाल में क्षेत्र के ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्याली क्षेत्रों में चले जाते हैं और अगस्त में इस उत्सव को मनाने के बाद ही वापस अपने गांव लौटते हैं। लेकिन, लौटने से पहले प्रकृति का आभार जताने के लिए वह अढूंडी उत्सव का आयोजन कर प्रकृति की पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते।
रिपोर्ट-सुभाष बडोनी उत्तरकाशी
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