Delhi Blast Incidents : दिल्ली की ठंडी नवंबर की सुबह एक बार फिर दहशत में बदल गई. ऐतिहासिक लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास खड़ी एक कार में जबरदस्त धमाका हुआ. इस धमाके में 8 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं. धमाके की आवाज इतनी तेज़ थी कि आसपास खड़ी गाड़ियों के शीशे टूट गए और इलाके में भगदड़ मच गई. एनआईए, दिल्ली पुलिस और एनएसजी की टीमें मौके पर पहुंचकर जांच में जुट गई हैं. शुरुआती जांच में विस्फोटक की किस्म का पता नहीं चल सका है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसे आतंकी साजिश मानकर जांच कर रही हैं.
दिल्ली – बार-बार आतंक की चपेट में
यह ताज़ा हादसा दिल्ली को उन काले दिनों की याद दिलाता है जब राजधानी बार-बार धमाकों से हिल चुकी है. 1996 से लेकर अब तक दिल्ली ने कई ऐसे ज़ख्म देखे हैं जो आज भी लोगों की यादों में ताज़ा हैं. आइए जानते हैं, पिछले तीन दशकों में दिल्ली में हुए बड़े धमाकों की पूरी टाइमलाइन.
1996: लाजपत नगर ब्लास्ट – 16 लोगों की मौत
21 मई 1996, दिल्ली के दिल लाजपत नगर का वो दिन कोई नहीं भूल सकता. भीड़भाड़ वाले सेंट्रल मार्केट में हुए बम धमाके ने पूरे देश को हिला दिया था. इस हमले में 16 लोगों की मौत और 40 से ज्यादा घायल हुए. यह राजधानी का पहला बड़ा आतंकी हमला था, जिसने दिल्ली की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए.
1997: एक के बाद एक धमाके
1997 दिल्ली के लिए खौफ का साल साबित हुआ.
- 9 जनवरी: आईटीओ के पास पुराने पुलिस मुख्यालय के निकट धमाका.
- 18 अक्टूबर: रानी बाग मार्केट में दो धमाके, एक की मौत.
- 26 अक्टूबर: करोल बाग में दो धमाकों में एक की मौत, 34 घायल.
- 30 नवंबर: लाल किले के पास डबल ब्लास्ट, तीन लोगों की मौत और 70 घायल.
इन धमाकों ने राजधानी को असुरक्षा के साए में ढक दिया था.
1998 से 2000: आतंक का सिलसिला जारी
26 जुलाई 1998 को कश्मीरी गेट आईएसबीटी पर बस में हुए धमाके में दो लोगों की जान गई. इसके बाद 18 जून 2000 को लाल किले के पास विस्फोट में एक बच्ची समेत दो लोगों की मौत हुई.
2005: दिवाली से पहले सिलसिलेवार धमाके
22 मई 2005 को सत्या सिनेमा और लिबर्टी हॉल के पास धमाके हुए, जिनमें दो लोग मारे गए. लेकिन सबसे भयानक हमला उसी साल 29 अक्टूबर को हुआ. दिवाली से ठीक पहले. सरोजिनी नगर, गोविंदपुरी और पहाड़गंज में हुए सिलसिलेवार धमाकों ने 60 लोगों की जान ले ली और 100 से अधिक घायल हुए. ये धमाके दिल्ली के दिल को झकझोर गए थे.
2006 से 2008: लगातार आतंकी वारदातें
14 अप्रैल 2006 को जामा मस्जिद के पास दो धमाके हुए, कई लोग घायल हुए. 13 सितंबर 2008 को कनॉट प्लेस, करोल बाग और ग्रेटर कैलाश में हुए धमाकों में 24 लोगों की मौत और 100 से अधिक घायल हुए. इसी साल 27 सितंबर को महरौली फ्लावर मार्केट में धमाका हुआ, तीन लोगों की मौत हुई.
2011: हाईकोर्ट पर आतंकी हमला
25 मई 2011 को दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर कार ब्लास्ट हुआ, सौभाग्य से कोई हताहत नहीं हुआ. लेकिन 7 सितंबर 2011 को हाईकोर्ट के गेट नंबर 5 पर सूटकेस में रखे बम के धमाके में 17 लोगों की मौत और 76 घायल हुए. इस हमले ने देश की न्याय व्यवस्था की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया.
2025: लाल किले के पास फिर धमाका
नवंबर 2025 में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास खड़ी कार में हुआ धमाका दिल्ली के लिए एक बार फिर दहशत की दस्तक लेकर आया. इस हादसे में 8 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए. एनआईए और एनएसजी की टीमें जांच में जुटी हैं और पूरे इलाके को सील कर दिया गया है.
अब भी अधूरी है सुरक्षा की कहानी
तकनीकी तरक्की, आधुनिक सीसीटीवी सिस्टम और खुफिया एजेंसियों की सख्ती के बावजूद दिल्ली जैसे हाई-प्रोफाइल शहर में इस तरह के धमाके होना चिंता का विषय है. 1996 से 2025 तक के ये धमाके बताते हैं कि आतंक की जड़ें अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं.
अब जरूरत है “सुरक्षा के नए नजरिए” की
राजधानी में बार-बार हो रहे इन धमाकों ने यह साबित किया है कि सिर्फ टेक्नोलॉजी या एजेंसियों पर निर्भर रहना काफी नहीं.
ज़रूरत है एक साझा जागरूकता अभियान की, जहां नागरिक भी सुरक्षा की जिम्मेदारी महसूस करें. दिल्ली को अब एक ऐसी रणनीति की जरूरत है जो न सिर्फ आतंक को रोक सके बल्कि लोगों के दिलों से डर मिटा सके.
आखिर कब तक?
हर धमाका न सिर्फ मासूमों की जान लेता है, बल्कि शहर के आत्मविश्वास को भी तोड़ता है. अब वक्त आ गया है कि दिल्ली केवल राजधानी नहीं, बल्कि सुरक्षित राजधानी बनकर उभरे.
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