
Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बेहद कम है. बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी लगभग 17.7% है, जबकि सीमांचल के जिलों कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज में यह आंकड़ा 40% से भी ज्यादा है. बावजूद इसके, प्रमुख राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय को टिकट देने में कंजूसी दिखा रहे हैं.
कितने मुस्लिम उम्मीदवार घोषित हुए?
दरअसल 243 विधानसभा सीटों में किसी भी बड़े दल ने चार से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा है. अपवाद के तौर पर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने 40 मुस्लिम उम्मीदवारों का वादा किया है और अब तक 21 नामों की घोषणा कर चुकी है.
बिहार के 87 निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 20% से ज्यादा है. किशनगंज में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, जहां कुल आबादी का 68% हिस्सा मुस्लिम है. इस हिसाब से मुस्लिम समुदाय चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
राजनीतिक दलों की स्थिति
- JDU: 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन केवल 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया.
- RJD: अब तक केवल 3 मुस्लिम उम्मीदवार घोषित किए गए.
- BJP: 101 सीटों में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं.
- कांग्रेस: 4 मुस्लिम उम्मीदवार घोषित किए, लेकिन पार्टी के अंदर सवाल उठ रहे हैं.
- LJP(R): 29 सीटों में से सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार.
- HAM और RLSP: किसी को भी टिकट नहीं.
इतिहास में प्रतिनिधित्व
बीते वर्षों में विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या कभी 10% से ज्यादा नहीं रही. 1985 में 324 सदस्यीय विधानसभा में 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. 2020 के चुनाव में केवल 19 मुस्लिम विधायक जीत पाए थे.
पसमांदा मुस्लिमों की स्थिति
बिहार के 2.3 करोड़ मुसलमानों में से 73% पसमांदा समुदाय से हैं. बावजूद इसके, केवल 18% मुस्लिम विधायक पसमांदा रहे. 2020 में सिर्फ 5 पसमांदा विधायक चुने गए थे, जिनमें से 4 AIMIM और 1 RJD से था.
वोटबैंक और राजनीतिक समीकरण
लालू यादव के MY (मुस्लिम-यादव) वोटबैंक को पहले सफलता की कुंजी माना जाता था, लेकिन नीतीश कुमार ने अत्यंत पिछड़े वर्गों को जोड़कर नया समीकरण बनाया. इस बदलाव ने पिछले दो दशकों में बिहार की सत्ता का गणित पूरी तरह बदल दिया.
बिहार चुनाव 2025 में मुस्लिम समुदाय की भूमिका निर्णायक हो सकती है, लेकिन राजनीतिक दलों की कंजूसी ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है. सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी राजनीतिक परिदृश्य को और पेचीदा बना रही है. अब देखना यह है कि मुस्लिम मतदाता इस बार किस दिशा में अपनी ताकत दिखाते हैं और कौन सा दल उनका भरोसा जीत पाता है.
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