
Smart Agricultural Machine : भोपाल के आईसीएआर-केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान (CIAE) का आज केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास के मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रशिक्षण किया. जिसके पश्चात संस्थान के वैज्ञानिकों, विद्यार्थियों और कर्मचारियों को संबोधित भी किया साथ ही शिवराज सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि विकास में CIAE का योगदान सराहनीय है. और यह भी कहा कि छोटे किसानों के लिए अनुकूल और किसान-हितैषी तकनीकों के विकास को और तेज करना जरूरी है, ताकि देश के हर कोने तक आधुनिक यंत्रीकरण पहुंच सके.
खेती में है नई तकनीकी की जरूरत
श्री चौहान ने छोटे इंजन एवं वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से चलने वाली सेंसर आधारित प्रणालियों और कृषि मशीनरी के विकास पर जोर दिया है, ताकि हर वर्ग के किसानों को समान लाभ मिल सके. उन्होंने यह भी कहा कि खेती में किसानों की जरूरत के हिसाब से नई तकनीकों को खेत तक पहुंचाया जाए.
साथ ही उन्होनें देश के विभिन्न क्षेत्रों में किसान मेले आयोजन कराया और सभी अधिकारियों के साथ विचार सांझा कर राष्ट्रीय यंत्रीकरण की रणनीति तैयार करने को भी कहा ताकि किसानों को नई तकनीकीयों का पता चल सके और वे तकनीकीयों को लाभ उठा सके. उन्होंने खाद्य सुरक्षा, मृदा स्वास्थ्य और ‘लैब टू लैंड’ ट्रांसफर की महत्व को बताया और कहा कि किसान के विकास के लिए खाद्य सुरक्षा और मृदा स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जाएगा.
संस्थान की सराहना की केंद्रीय मंत्री ने
केंद्रीय मंत्री ने संस्थान द्वारा विकसित ट्रैक्टर चालित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर सहित अन्य तकनीकों का अवलोकन किया और उनकी सराहना की. उन्होंने कहा कि इस तरह की तकनीकी उपलब्धियां किसानों की मेहनत और लागत दोनों में कमी लाएँगी और उत्पादन में बढ़ोतरी होगी.
आत्मनिर्भर और विकसित भारतीय कृषि
चौहान ने कहा कि भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने के लिए हमें किसानों की जरूरतों के अनुसार तकनीकी नवाचार, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और यंत्रीकरण पर फोकस करना होगा. सभी वैज्ञानिकों और संस्थानों को मिलकर काम करना है, ताकि छोटे किसान भी तकनीकी लाभ से वंचित न रहें. यह दौरा संस्थान के वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के लिए सिखने जैसा है.
एक साथ कई कृषि कार्य, समय और मेहनत दोनों की बचत
ICAR-CIAE द्वारा विकसित इस आधुनिक यंत्र की मदद से ऊँची क्यारियाँ बनाना, ड्रिप पाइप बिछाना, प्लास्टिक मल्च लगाना और बीज बोना जैसे कई कृषि कार्य एक साथ किए जा सकते हैं. आमतौर पर ये कार्य मैन्युअल रूप से करना कठिन, समय और श्रमसाध्य होता है, जिसमें लगभग 29 मानव-दिन प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है.
इस यंत्र में ट्रैक्टर की हाइड्रोलिक प्रणाली से संचालित 385 न्यूटन मीटर की हाइड्रोलिक मोटर और चेन-स्प्रोकेट ट्रांसमिशन सिस्टम लगा है, जो एक्सेंट्रिक-स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म को चलाता है. वहीं बीज डालने के लिए ट्रैक्टर के PTO से चलने वाला वैक्यूम आधारित एस्पिरेटर ब्लोअर लगाया गया है, जिससे बीज की सटीक बुवाई संभव होती है.
कैसे करता है यह यंत्र काम
प्न्यूमैटिक बीज मापने वाली प्लेट और एक्सेंट्रिक स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म को इस प्रकार समकालिक किया गया है कि मापने वाली प्लेट द्वारा उठाया गया बीज बंद “प्लांटिंग जॉ” में डाला जाता है, जो बीज को पकड़े रखता है और स्लाइडर क्रैंक के माध्यम से प्लास्टिक मल्च में प्रवेश करने के बाद उसे छोड़ता है.यंत्र की प्रभावी कार्य क्षमता 0.2 हेक्टेयर प्रति घंटा और कार्य निपुणता 74 प्रतिशत है, जो कि 1.7 किमी प्रति घंटा की गति के साथ-साथ 1 मीटर कार्य चौड़ाई पर आधारित है इस यंत्र की कुल लागत ₹3 लाख और चलाने कि लागत 1500 प्रति घंटा है. इसके पेबैक को समय 1.9 वर्ष (444 घंटे) और ब्रेक-ईवन पॉइंट 70 घंटे प्रति वर्ष है.
यंत्र का प्रारुप और लागत
यह पंक्ति से पंक्ति की दूरी 0.5 से 0.9 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 0.2 से 0.6 मीटर को यांत्रिक रूप से अनुकूलित हो सके है. यह यंत्र मौजूदा ड्रिप लेटरल-कम-प्लास्टिक मल्च लेयर मशीन की तुलना में 26 मानव-दिन/हेक्टेयर (89%) और ₹6600/हेक्टेयर 43 प्रतिशत की लागत की बचत करता है. यह यंत्र प्लास्टिक मल्च में उच्च मूल्य वाली फसलें जैसे बेबी कॉर्न, हरी मटर, भिंडी,खरबूजा, ककड़ी, स्वीट कॉर्न, फलियां आदि लगाने के लिए बहुत है.
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