पंजाब के लिए बड़ी जीत, हाईकोर्ट द्वारा ज्यादा पानी छोड़ने के मामले में बी.बी.एम.बी., हरियाणा और केंद्र सरकार को नोटिस जारी

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पंजाब के लिए बड़ी जीत, हाईकोर्ट द्वारा ज्यादा पानी छोड़ने के मामले में बी.बी.एम.बी., हरियाणा और केंद्र सरकार को नोटिस जारी

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Punjab News : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा 6 मई 2025 को भाखड़ा नांगल बांध से हरियाणा को अतिरिक्त पानी छोड़ने संबंधी दिए गए हुक्म को रद्द करवाने के लिए पंजाब सरकार द्वारा हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की गई थी.

चीफ़ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमीत गोयल की अगुवाई वाले हाईकोर्ट के बेंच ने 20 मई को होने वाली अगली सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार द्वारा दायर अर्जी पर भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी), हरियाणा सरकार और केंद्र सरकार से जवाब माँगे हैं.

2 मई को लिए गए फैसले पर सख्त ऐतराज जताया गया

राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि पंजाब राज्य ने माननीय अदालत में यह दलील देते हुए कि केंद्रीय गृह सचिव के पास बी.बी.एम.बी. के नियमों के अधीन पानी के बँटवारे के बारे में फैसला लेने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, केंद्र सरकार द्वारा 2 मई को लिए गए फैसले पर सख्त ऐतराज जताया गया.

गैर-कानूनी हुक्म को लागू करने की कोशिश

पंजाब के एडवोकेट जनरल मनिंदरजीत सिंह बेदी और अतिरिक्त एडवोकेट जनरल चंचल सिंगला के साथ पेश हुए सीनियर वकील गुरमिंदर सिंह ने दलील दी कि हरियाणा को अतिरिक्त पानी आवंटित करने संबंधी लिए गए गैर-कानूनी हुक्म को लागू करने की कोशिश में बी.बी.एम.बी. ने तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया है.

पंजाब की सहमति की जरूरत है

पंजाब सरकार ने जोरदार ढंग से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि संविधान की धारा 262 और अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत हरियाणा को पंजाब के निर्धारित हिस्से से ज्यादा पानी छोड़ने के लिए पंजाब की सहमति की जरूरत है. अपनी दलील में सरकार ने कहा कि उसकी ओर से पहले ही हरियाणा को रोजाना 4,000 क्यूसेक पानी देने के लिए सहमति दे दी गई है, लेकिन आठ दिनों के लिए 4,500 क्यूसेक की अतिरिक्त माँग पर हमें ऐतराज है.

अदालत को बताया गया कि 28 अप्रैल को बी.बी.एम.बी. की मीटिंग के दौरान पंजाब ने हरियाणा द्वारा 8,500 क्यूसेक पानी की माँग पर कई ऐतराज दायर किए थे, जिसमें इस संबंध में कोई सहमति नहीं बन सकी.

जल ट्रिब्यूनल गठित करके ही लिया जा सकता है

पंजाब सरकार ने कहा है कि राज्यों के बीच पानी के विवाद संबंधी कोई भी फैसला 1956 के अधिनियम के अधीन जल ट्रिब्यूनल गठित करके ही लिया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि 20 मई को इस मामले की सुनवाई पंजाब सरकार के विरुद्ध दायर किए गए मानहानि के मामले के केस के साथ ही की जाएगी.

लत ढंग से तथ्य पेश करने का आरोप लगाया गया

पंजाब के एडवोकेट जनरल मनिंदरजीत सिंह बेदी ने कहा कि पंजाब सरकार ने 12 मई को 6 मई के अदालत के आदेशों को चुनौती देते हुए एक समीक्षा याचिका दायर की थी, जिसमें प्रक्रियात्मक उल्लंघनों और गलत ढंग से तथ्य पेश करने का आरोप लगाया गया था. याचिका में दलील दी गई है कि बी.बी.एम.बी. भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के इशारे पर पंजाब के पानी को गैर-कानूनी ढंग से हरियाणा की ओर मोड़ने की कोशिश कर रहा है.

फैसलों का आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं माना जा सकता

समीक्षा याचिका की मुख्य दलीलों में 2 मई की मीटिंग, जिसे औपचारिक फैसला लेने के लिए एक मंच के तौर पर दर्शाया गया था, के बारे में चिंताएँ और शंकाएँ शामिल हैं, जबकि इस मीटिंग में राज्य के अधिकारियों को आधिकारिक रिकॉर्ड प्रदान नहीं किया गया. पंजाब सरकार ने जोर देकर कहा है कि 2 मई की मीटिंग के बारे में औपचारिक रिकॉर्ड की बजाय सिर्फ एक प्रेस नोट प्रसारित किया गया था, जिसे लिए गए फैसलों का आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं माना जा सकता.

दालत के आगे गलत ढंग से पेश किया गया

समीक्षा याचिका में आगे स्पष्ट किया गया है कि यह मीटिंग 1974 के नियमों के रूल 7 के तहत नहीं की गई थी जैसा कि अदालत के आगे गलत ढंग से पेश किया गया और सही ढंग से पेश न की गई यह जानकारी ही 6 मई, 2025 के विवादास्पद अदालती आदेशों का आधार बनी.

अधिकारी गृह सचिव नहीं बल्कि बिजली सचिव हैं

जब इस संबंध में अदालत द्वारा निर्देश दिए गए तो केंद्र सरकार 2 मई की मीटिंग का आधिकारिक रिकॉर्ड पेश करने में असफल रही और जो पेश किया गया उसे केंद्र सरकार द्वारा मीटिंग में हुई “चर्चा संबंधी रिकॉर्ड” कह कर पेश किया गया. पंजाब सरकार ने बताया था कि अदालत को दी गई जानकारी के अनुसार ऐसे मामलों में फैसले लेने के लिए नियम 7 के तहत समर्थ अधिकारी गृह सचिव नहीं बल्कि बिजली सचिव हैं.

6 मई के आदेशों की समीक्षा करने की माँग की

उपयुक्त दस्तावेजा रिकॉर्ड और तथ्यों की कमी के बावजूद बी.बी.एम.बी. ने जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना हरियाणा को पानी छोड़ा. पंजाब सरकार ने इन गंभीर प्रक्रियात्मक उल्लंघनों और तथ्यों की गलत प्रस्तुति के मद्देनजर अदालत से अपने 6 मई के आदेशों की समीक्षा करने की माँग की है.

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