सुपर संसद की तरह काम कर रहे जज, राष्ट्रपति को नहीं दे सकते आदेश, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के उपराष्ट्रपति

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
Vice President Jagdeep Dhankhar : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल 2025) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को निर्देशित करने वाले हालिया आदेश की तीखी आलोचना की। यह आदेश राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर समयसीमा में निर्णय लेने से संबंधित था। धनखड़ ने इसे न्यायपालिका द्वारा लोकतांत्रिक प्रणाली में अनुचित हस्तक्षेप करार दिया। इसे लेकर उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में कभी भी ऐसा लोकतंत्र नहीं रहा, जहां न्यायाधीश किसी लॉ मेकर, कार्यपालिका और यहां तक कि ‘सुपर संसद” के रूप में काम करें।
राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट लोकतांत्रिक ताकतों पर परमाणु मिसाइल नहीं दाग सकता।
‘सुपर संसद की तरह काम कर रहे जज’
धनकड़ ने कहा, ‘‘हमारे पास ऐसे जस्टिस हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यपालिका के कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।’’
धनकड़ ने अनुच्छेद 142 को परमाणु मिलाइल करार दिया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसे न्यायपालिका को पूरी शक्तियां देने वाला प्रावधान माना जाता है। उन्होंने इसे “लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल” करार दिया, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है। उनका कहना था, “अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन चुका है, जिसे न्यायपालिका कभी भी इस्तेमाल कर सकती है।” संविधान का यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को अपने समक्ष किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण शक्ति भी कहा जाता है।
देश में क्या हो रहा है- उपराष्ट्रपति ने पूछा
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. हम किस दिशा में जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई पुनर्विचार याचिका दायर करता है या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी चिंताएं बहुत बड़े स्तर पर थीं और उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ऐसा देखने को मिलेगा। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को याद दिलाया कि भारत के राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।’’
‘राष्ट्रपति को नहीं दे सकते निर्देश’
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए, और वह भी किस आधार पर?” उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 145(3) का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायालय के पास संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है, और इसके लिए कम से कम पांच न्यायाधीशों का पैनल होना चाहिए।
शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि जब सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, तो वह संसद और चुनावों में जनता के प्रति जवाबदेह होती है। “जवाबदेही का सिद्धांत काम करता है, संसद में सवाल पूछे जा सकते हैं, लेकिन अगर कार्यपालिका शासन न्यायपालिका से संचालित हो, तो आप सवाल किससे पूछेंगे?” उपराष्ट्रपति ने यह भी जोड़ा।
धनखड़ ने यह चेतावनी दी कि अब समय आ गया है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों संस्थाओं को अपने-अपने क्षेत्र में काम करने देना चाहिए। उन्होंने कहा, “किसी एक संस्था का दूसरी संस्था के क्षेत्र में हस्तक्षेप लोकतंत्र के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जो कि एक अच्छी बात नहीं है।”
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