
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रेमचंद शर्मा वह शख़्स हैं, जिन्होंने खेती-बागवानी के क्षेत्र में एक नई इबारत लिख डाली। पांचवीं पास होने के बाद भी उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर वो कर दिखाया, जो हर किसी के बस की बात नहीं होती। उत्तराखंड के रहने वाले किसान प्रेमचंद ने उत्तराखंड में अनार की खेती कर क्रांति ला दी।
दो दशक पहले तक उत्तराखंड में अनार या किसी अन्य फल की बागवानी करना आसान नहीं था; क्योंकि यहाँ फलों में कीड़े लग जाया करते और पेड़ सड़ जाते थे। ऐसे में, प्रेमचंद इस समस्या का समाधान निकालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कृषि विभाग के विशेषज्ञों से मदद मांगी, लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि यहाँ की जलवायु में अनार की खेती नहीं की जा सकती।
प्रेमचंद शर्मा ने फिर भी हार नहीं मानी और इसका हल ढूंढने में लगे रहे। कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि अनार को क्राफ्टिंग और बीज दोनों तरीकों से उगाया जा सकता है। इसी दौरान 1990 में उन्हें महाराष्ट्र के सोलहपुर में उगाए जाने वाले ‘भगवा’ किस्म के अनार के बारे में भी जानकारी हुई। इस किस्म की खास बात यह थी कि इसमें आसानी से कीड़े नहीं लगते और इसके पौधे को ज़्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है।
इसके बाद उन्होंने इस किस्म के 500 ग्राफ्टेड पौधे मंगाए और इन्हें लगाना शुरू किया। आखिरकार, उन्हें इसमें सफलता हासिल हुई और इन पेड़ों में निकले फल देसी अनार से बड़े हुए, जिनमें बीजों की संख्या भी ज़्यादा थी। अब इसको बेचने के लिए बाज़ार ढूंढना भी किसान प्रेमचंद के लिए एक चुनौती थी। उन्होंने एक बार फिर हार न मानते हुए इसके लिए आखिरकार उपयुक्त बाज़ार ढूंढ निकाला और इसे बेच मुनाफ़ा कमाना भी शुरू कर दिया।
इस तरह उन्होंने उत्तराखंड में अनार की खेती में क्रांति ला दी। उनकी सफलता को देखते हुए, आस-पड़ोस के अन्य किसानों ने उनसे अनार की कलम के लिए अनुरोध किया और इसके बाद साल 2000 में उन्होंने 2000 पौधों की एक नर्सरी तैयार की। प्रेमचंद ने अपनी फसल को अपने राज्य और पड़ोसी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 350 किसानों को बेचा।
आज आपको उत्तराखंड में अनार की खेती करते हुए कई किसान दिख जाएंगे। साथ ही.. अब प्रेमचंद खेती में किसी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं करते, बल्कि पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती को अपना रहे हैं। आज वह अनार, सेब, पपीता आदि उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और अन्य किसानों की मदद भी कर रहे हैं।
सिर्फ 5वीं तक पढ़े प्रेमचंद, कृषि क्षेत्र में विविध तरह की फसलों को एक साथ उगाने से लेकर ऑर्गेनिक खेती तक के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही वह कृषि में विकास के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। साल 2014 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से उन्हें किसान सम्मान दिया गया और इसी साल उन्हें पद्म श्री सम्मान से भी नवाज़ा गया था।