
Bhumij Tribe : ब्रिटिश काल में चुआड़ भारतीय जनजाति अब भूमिज के नाम से जानी जाती है। ब्रिटिश शासन के पहले से ही कई भूमिज घाटवाल जमींदार बन गए थे और कुछ ने तो राजा की उपाधि भी हासिल कर ली थी। भारत के झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के साथ – साथ बांग्लादेश में भी इनकी एक बड़ी आबादी पाई जाती है। भूमिज, मुंडा और हो एक ही नस्ल की जनजाति है। इनकी भाषा भूमिज या होड़ो होती है। यह मुंडा समुदाय का एक समूह था जो कि पूर्वी दिशा में चला गया था। जिसकी वजह से उनका अन्य मुंडा समुदाय से संबंध टूट गया। भूमिज का अर्थ है कि ‘वह जो मिट्टी से पैदा हुआ हो’। भूमिज घाटवाल पातुक, धलभूम, बाघमुंडी और बड़ाभूम के वंशज है। मुगल काल में भूमिज जनजाति का छोटानागपुर में स्वतंत्र राज हुआ करता था।
1766 और 1834 के बीच प्रसिद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी और चुआड विद्रोह के शासन के खिलाफ बांकुड़ा, मानभूम और मिदनापुर के पश्चिम बंगाली बस्तियों के आसपास के ग्रामीण इलाकों के निवासी आदिवासी – जमीनदारों द्वारा विद्रोह की एक श्रृंखला शुरू हुई। इसके बाद 1831 – 1832 में चुआड़ों द्वारा कोल विद्रोह, 1832 में भूमिज विद्रोह, 1858 – 1895 में भूमिज सरदारों द्वारा सरदारी आंदोलन और 1894 में बिरसा मुंडा के उलगुलान में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
भूमिज जनजाति की संस्कृति
मानभूम के भूमिजों का यह मानना है कि सैन्य सेवा ही उनका मूल पेशा हुआ करता था। इसके बाद सभी जनजातियों द्वारा कृषि को अपना लिया गया था। बिहार और झारखंड में भूमिज आज भी मछली पकड़ने, कृषि, शिकार और वन उत्पादों पर ही निर्भर है। विभिन्न मौसमी रूप से उपलब्ध वन उत्पाद उनके लिए आय का एक सहायक स्रोत हैं। यह मांसाहारी है, दीमक और कीड़े भी खाते है। मगर, सूर का मांस या बीफ नहीं खाते और मुख्य भोजन के रूप में चावल का साल भर सेवन किया जाता है।
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