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‘यौन उत्पीड़न के लिए स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट जरूरी नहीं’: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कहा गया था कि नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है जब तक कि स्किन टू स्किन संपर्क न हो। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने पोक्सो (POCSO) एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इस कानून के तहत अगर स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट नहीं हुआ तो उसे सेक्शुअल हैरेसमेंट नहीं कहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO पर बदला बॉम्बे HC का फैसला

दरअसल ये मामला नागपुर का है जहाँ एक 16 साल की लड़की की ओर से यह केस दायर किया गया था। घटना के समय उसकी उम्र 12 साल और आरोपी की उम्र 39 साल थी। पीड़ित के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश उसे खाने का सामान देने के बहाने अपने घर ले गया था। उसके ब्रेस्ट को छूने और निर्वस्त्र करने की कोशिश की थी। सेशन कोर्ट ने इस मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत तीन साल और IPC की धारा 354 के तहत एक साल की सजा सुनाई थी। ये दोनों सजाएं एकसाथ चलनी थीं।

यौन उत्पीड़न के लिए ‘स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट’ जरूरी नहीं: SC

बाद में मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 12 जनवरी को अपने आदेश में कहा था कि 12 साल की बच्ची से यौन शौषण के ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जिससे साबित हो सके कि उसका टॉप उतारा गया या फिर फिजिकल कॉन्टैक्ट हुआ। इसलिए इसे यौन अपराधों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता।
लेकिन 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें आरोपी को बरी किया गया था।

नागपुर बेंच के इस फैसले पर उस समय काफी विवाद हुआ था और एक बहस ही छिड़ गई थी । इस फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी।

मामले की सुनवाई करते हुए , जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा कि गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्शुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा। अदालत ने कहा कि अगर कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण की श्रेणी में न आए तो पोक्सो एक्ट का मकसद ही खत्म हो जाएगा और फिर हम बच्चों को शोषण से बचा नहीं सकते।

कोर्ट ने कहा कि सीधे सरल शब्दों के गूढ़ अर्थ निकालने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। पहने हुए कपड़ों या किसी अन्य कपड़े के ऊपर से बच्चे को गलत नीयत से छूना भी पॉक्सो एक्ट में आता है।

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