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बिहार चुनाव 2025: राजद ने कांग्रेस को दिया सख्त अल्टीमेटम, सीटों की सियासत में बड़ा ड्रामा

Bihar Mahagathbandhan Seat Sharing : बिहार की राजनीति में सीटों की सियासत अब अपने चरम पर है। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के अंदर सख्त संदेश और नई रणनीतियां उभरकर सामने आई हैं। राजद ने कांग्रेस को स्पष्ट कर दिया है -“जिताऊ और हराऊ सीटों की अदला-बदली अब स्वीकार नहीं होगी.” नए दलों की एंट्री, वामपंथियों की बढ़ती ताकत और पुराने समीकरणों में बदलाव ने राजनीति के इस खेल को और पेचीदा बना दिया है. क्या महागठबंधन समय रहते सीटों पर समझौता कर पाएगा, या फिर अंदरूनी मतभेद इसे चुनावी जंग में कमजोर कर देंगे? आइए जानें इस राजनीतिक ड्रामे की पूरी कहानी…


नए दल और बदलते समीकरण

इस बार महागठबंधन में नए दलों की एंट्री जैसे मुकेश सहनी की वीआईपी, पशुपति पारस का गुट और झारखंड से हेमंत सोरेन की जेएमएम—से सीटों का समीकरण बदलना तय है. वहीं वाम दलों ने पिछले चुनाव में कम सीटों पर बेहतर स्ट्राइक रेट दिखाया, इसलिए उन्हें अधिक सीटें देने की मांग भी उठ रही है.


राजद का सख्त रुख

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा. इस बार राजद ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस को केवल उन सीटों में चुनाव लड़ना होगा जो उसके हिस्से में आई हैं. “जिताऊ-हराऊ” सीटों पर कोई अदला-बदली नहीं होगी. इसका मतलब साफ है. राजद अब महागठबंधन की मजबूरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरेगा.


कांग्रेस की उलझन

राजद के सख्त रुख के बाद कांग्रेस में हलचल बढ़ गई है. राज्य स्तर के नेताओं ने मामला अपने आलाकमान के पास पहुँचा दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अब भी अपनी शर्तें मनवा सकती है या नए समीकरण को मान कर चुनाव की तैयारी शुरू करेगी.


महागठबंधन की चुनौती

महागठबंधन के सामने अब सिर्फ भाजपा और एनडीए से लड़ना नहीं है, बल्कि अंदरूनी सामंजस्य बनाए रखना भी बड़ी चुनौती है. यदि सीट बंटवारे पर समय रहते सहमति नहीं बनी, तो चुनावी तैयारियों पर असर पड़ सकता है.

राजद का रुख साफ बताता है कि इस बार राजनीति समझौतों से ज्यादा जमीन पर मजबूती पर फोकस कर रही है. कांग्रेस और अन्य दलों के सामने विकल्प सीमित हैं या तो नए समीकरण को मानें और चुनाव की तैयारी करें, या फिर अंदरूनी मतभेदों के चलते खुद को हाशिए पर जाने दें. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या महागठबंधन सीटों की सियासत में उलझ कर रह जाएगा या समझौते पर पहुंच पाएगा.

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