
Sahariya : भारतीय उपमहाद्वीप की एक महत्वपूर्ण आदिवासी जनजाति सहरिय समुदाय। इनका इतिहास काफी पुराना है। सहरिय लोग आदिवासी समाज की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। जिनकी जीवनशैली और परंपराएं प्राचीन काल से चली आ रही हैं। मगर, हाल ही के वर्षों में आधुनिकता और बाहरी प्रभावों के चलते उनके पारंपरिक तरीके में कुछ बदलाव आ गए हैं।
सहरिय जनजाति का मुख्य आधार कृषि और वन संसाधन है। वे अनाज, दालें, और सब्जियाँ उगाते हैं। कई सहरिय परिवार वनों से लकड़ी, फल और अन्य वन उत्पाद इकट्ठा करते हैं। शिकार भी उनकी पारंपरिक जीवनशैली का हिस्सा है।
यह समुदाय अपनी परिवारिक आजीविका के लिए दैनिक मजदूरी, निर्माण कार्य और अन्य अस्थायी कामों पर निर्भर हो गए हैं। शिक्षा और विकास की कमी के कारण उनके लिए आर्थिक अवसर सीमित रह गए हैं।
भौगोलिक स्थिति
सहरिय समुदाय मुख्य रूप से राजस्थान के बारां और सवाई माधोपुर जिलों तथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी और गुना जिलों में बसी हुई है। इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति और जलवायु समुदाय के लोगों की जीवनशैली पर काफी प्रभाव डालती हैं। ये क्षेत्र आमतौर पर शुष्क और अनउपजाऊ होते हैं। जिससे जनजाति की आजीविका में कठिनाईयाँ आती हैं।
इनकी जीवनशैली, सांस्कृतिक परंपराएं और सामाजिक संरचना उनकी पहचान को दर्शाती हैं। पारंपरिक नृत्यों, गीतों और त्यौहारों में उनकी पारंपरिक पहचान झलकती है। उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने वाले पारंपरिक वस्त्रों और आभूषणों में विशमष रूचि रखते हैं। उनकी लोक कला और शिल्पकला भी बहुत महत्वपूर्ण है।
सहरिय समुदाय आज के समय में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। जिनमें शिक्षा की कमी, गरीबी, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी समस्याएं शामिल हैं। साथ ही आधुनिकता के कारण उनकी पारंपरिक जीवनशैली में भी बदलाव आया है।
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