
DU Admission Crisis : दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में इस वर्ष भी स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. प्रवेश की चारों चरणों की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन अब भी लगभग 9500 सीटें खाली हैं. इनमें अधिकतर सीटें विज्ञान और भारतीय भाषाओं से संबंधित कोर्सों में हैं. विश्वविद्यालय ने अब मॉप-अप राउंड के ज़रिए बारहवीं कक्षा के अंकों के आधार पर खाली सीटों को भरने का निर्णय लिया है.
कटऑफ प्रणाली बनाम CUET: शिक्षकों की चिंता
कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के जरिए दाखिला प्रक्रिया को शुरू हुए तीन साल हो चुके हैं. लेकिन अब सीटों के खाली रहने और देरी से शुरू हो रहे सत्र को लेकर इस प्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं. शिक्षकों का मानना है कि CUET की प्रक्रिया छात्रों के लिए जटिल और भ्रमित करने वाली होती जा रही है.
इंडियन नेशनल टीचर्स कांग्रेस (INTEC) के चेयरमैन प्रो. पंकज कुमार गर्ग के अनुसार, “कटऑफ प्रणाली के तहत सभी सीटें समय पर भर जाती थीं, और सत्र भी जुलाई में शुरू हो जाता था. अब अगस्त में भी सीटें खाली हैं और छात्र निजी संस्थानों की ओर रुख कर रहे हैं.”
विज्ञान और भाषाओं में भारी गिरावट
विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार, संस्कृत ऑनर्स की 1400 सीटों में से 800 खाली हैं, जबकि पंजाबी विषय में 204 में से 112 और उर्दू में 207 में से 127 सीटें खाली हैं. ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारतीय भाषाओं की ओर छात्रों का रुझान कम हो रहा है, जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाता.
आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज में विज्ञान विषयों की 115 सीटें खाली हैं. यही स्थिति कई अन्य संस्थानों की भी है:
- अदिति कॉलेज – 674 सीटें
- भगिनी निवेदिता कॉलेज – 709
- जाकिर हुसैन कॉलेज – 387
- कालिंदी कॉलेज – 385
- दयाल सिंह कॉलेज – 311
- भारती कॉलेज – 307
- श्यामलाल कॉलेज – 301
- देशबंधु कॉलेज – 295
तकनीकी खामियों से छात्रों का नुकसान
एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (AAD) के प्रो. राजेश झा ने बताया कि सीयूईटी पोर्टल (CSAS) के माध्यम से दाखिला प्रक्रिया छात्रों के लिए बेहद उलझनभरी साबित हो रही है. विकल्प भरने में हुई गलतियों के कारण छात्र अच्छे अंकों के बावजूद भी मनपसंद कॉलेज में प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं.
इसके अलावा, CUET परिणाम समय पर जारी नहीं हो पा रहे, जिससे दाखिला प्रक्रिया और अधिक विलंबित हो रही है. इस वर्ष भी जुलाई में ही परिणाम आए, जिससे सत्र अगस्त में जाकर शुरू हो पाया.
मॉप-अप राउंड: आखिरी उम्मीद
अब जब विश्वविद्यालय 12वीं के अंकों के आधार पर मॉप-अप राउंड शुरू कर रहा है, तो इस कदम से खाली सीटों को भरने की उम्मीद की जा रही है. हालांकि, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट का मानना है कि सत्र शुरू हुए डेढ़ महीना बीत चुका है, और अब प्रवेश लेने वाले छात्र शायद रुचि न दिखाएं.
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि अंत में 12वीं के अंक ही निर्णायक होंगे, तो फिर CUET प्रक्रिया का औचित्य ही क्या रह जाता है?
दिल्ली विश्वविद्यालय में सीटों का खाली रहना अब एक संरचनात्मक समस्या बनता जा रहा है. जबकि CUET को पारदर्शी और एकरूप दाखिला प्रणाली के रूप में लाया गया था, इसके तकनीकी और प्रायोगिक पक्ष अब छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए चिंता का विषय बनते जा रहे हैं. मॉप-अप राउंड इस साल के लिए समाधान हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक सुधारों की जरूरत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
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