
मान्यता है कि कलयुग में भी ऐसे 8 चिरंजीव देवता और महापुरुष हैं जो जीवित हैं। इन्हीं 8 महापुरषों में एक भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम हैं, जिनकी जयंती अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। धार्मिक कथाओं के मुताबिक, भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ कर पूरी दुनिया को जीत लिया था, लेकिन उन्होंने सबकुछ दान कर दिया। इस साल परशुराम जयंती (Parshuram jayanti 2022) 3 मई को मनाई जा रही है। कहा जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। इतना ही नहीं इन्होंने क्रोध में भगवान गणेश को भी नहीं बख्शा था।
अपनी ही माता का सिर काट दिया था
परशुराम अपने माता-पिता की आज्ञाकारी संतान थे एक बार पिता के आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने अपनी माता का सिर काट दिया था। बाद में पिता से विनती कर माता को दोबारा जीवित होने का वरदान भी प्राप्त किया।
न्याय के देवता
परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनका जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम जी को न्याय का देवता माना जाता है।
गणपति को भी दिया था दंड
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम के क्रोध से स्वयं गणेश जी भी नहीं बच पाये थे। ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार जब परशुराम जी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे तो भगवान गणेश जी उन्हें शिव से मुलाकात करने के लिए रोक दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।
21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था
परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन अपने बल और घमंड की वजह से ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार करते जा रहा था।
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