Dara Singh Death Anniversary: अखाड़े के ही नहीं, बल्कि एक्टिंग, राइटिंग, राजनीति हर फील्ड के थे चैंपियन, बस इस जंग में मिली हार..

दारा सिंह

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Dara Singh Death Anniversary: वह जिस भी फील्ड में उतरे, वहां अपनी चमक बिखेरते गए। यहां बात हो रही है दारा सिंह की जिन्होंने साल 2012 में आज ही के दिन यानी 12 जुलाई को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

दारा सिंह यानी दीदार सिंह रंधावा पंजाब के ऐसे पहलवान जिन्होंने दुनियाभर में अपना नाम कमाया। पहलवानी का शौक उन्हें बचपन से था। यहीं वजह रही कि उन्हें जहां मौका मिला, वहां उन्होंने अपने लोहा मनवाया। दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 के दिन पंजाब के अमृतसर स्थित धरमूचक गांव में हुआ था। डेथ एनिवर्सरी स्पेशल में हम आपको बता रहे हैं कि दारा सिंह सिर्फ अखाड़े के ही नहीं, बल्कि हर फील्ड के चैंपियन थे। बॉलीवुड में 53 इंच की छाती से फेमस दारा सिंह की आज 11वीं पुण्यतिथि है। उन्हें जिंदगी में सिर्फ एक ही चीज ने मात दी, आइए जानते हैं वह क्या थी?

कुश्ती में मनवाया अपना लोहा

1947 में जब देश आजाद हुआ था, उस वक्त दारा सिंह अपनी पहलवानी का लोहा मनवाने सिंगापुर पहुंच गए। वहां उन्होने मलेशिया मे पहलवानों को पटखनी देकर अपना नाम रोशन कर लिया। 1954 में वह भारतीय कुश्ती के चैंपियन बने तो कॉमनवेल्थ में भी मेडल अपने नाम किया। विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग भी उनके सामने टिक नहीं पाए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि 55 साल के दौर में उन्होंने 500 मुकाबले लड़े और हर किसी में जीत हासिल की। साल 1983 में कुश्ती का आखिरी मुकाबला जीत कर उन्होंने पेशेवर कुश्ती को अलविदा कह दिया था। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें अपराजेय पहलवान के खिताब से नवाजा था। 

फिल्मों में भी बनाई पहचान

साल 1952 में दारा सिंह ने फिल्म संगदिल से बॉलीवुड में एंट्री की। इसके बाद उन्होंने फौलाद, मेरा नाम जोकर, धर्मात्मा, राम भरोसे जैसी तमाम फिल्मों में काम किया। दारा सिंह ने 500 से ज्यादा फिल्में की। वहीं रामानंद सागर की रामायण में हनुमान का किरदार निभाकर वे घर-घर फेमस हो गए। इस रोल के बाद उन्हें कई जगह भगवान की तरह पूजा जाने लगा। कहा जाता है कि इस रोल के लिए दारा सिंह ने नॉनवेज खाना तक छोड़ दिया था।

कलम से भी दिखाया दमखम

दारा सिंह ने कलम से भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने साल 1989 में अपनी ऑटोबायोग्राफी मेरी आत्मकथा लिखी, जो 1993 के में हिंदी में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने नानक दुखिया सब संसार फिल्म बनाई। जिसे उन्होंने खुद ही डायरेक्ट और प्रोड्यूस भी किया। उन्होंने हिंदी के अवावा पंजाबी में भी फिल्म बनाई।

राजनीति का सफर भी रहा शानदार

कुश्ती के बाद फिल्मों और राइटिंग में अपना परचम लहराने के बाद दारा सिंह ने राजनीति में भी कदम रखा। उन्होंने 1998 के दौरान बीजेपी जॉइन करके अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। साल 2003 में वह राज्यसभा सांसद बनें। इसके अलावा जाट महासभा के अध्यक्ष भी थे।

जिंदगी से हार गए जंग

अपनी जिंदगी मे हर क्षेत्र में सफलता का स्वाद चखने वाले दारा सिंह जिंदगी की जंग हार गए थे। 7 जुलाई 2012 के दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके सामने यह कभी न पराजित होने वाला पहलवान भी हार गया। दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें हॉस्पिटल मे भर्ती कराया, लेकिन 12 जुलाई को दारा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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