आखिर क्यों 6 महीने भी नहीं चला तीरथ सिंह रावत का जलवा, 4 महीने में ही धोना पड़ा कुर्सी से हाथ

उत्तराखंड :बीजेपी पार्टी में काफी दिनों से राजनेताओं को ले कर उठा पटक चल रही है. इसके पहले हिंदी खबर ने आपको योगी से जुडी उत्तरप्रदेश की सियासी अटकलों के बारे में सारी बाते बताई थी उस वक्त भी अचानक से हुए योगी के दिल्ली दौरे ने सब को चौंका के रख दिया था। लोग तमाम तरह के बाते भी बना रहे थे। उत्तरप्रदेश के विपक्ष दल के नेता अखिलेश यादव ने तो योगी को दर – दर भटकने वाला भिखारी तक कह दिया था। लेकिन सारे अफवाहों को साफ करते योगी फिर से यूपी के राजनेता के रूप में उभर के सामने आए।
अब अचानक से उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने अपनी सारी मीटिंग और प्रोग्राम को रद्द कर के दिल्ली पहुंचे, जहां उनकी मूलाकात अमित शाह, जेपी नड्डा से हुई। लेकिन इस बार इसमें भयंकर ट्विस्ट आया और तीरथ बाहर निकल कर देर रात सवा ग्यारह बजे राजभवन पहुंच कर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही – मैं अभी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर ही आ रहा हूं।
सब के मन में एक ही सवाल उत्पन हो रहा है की आखिर क्या आई ऐसी बाधा की छोड़नी पड़ी तीरथ को कुर्सी
उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में एक वर्ष से भी कम का समय बचा है और पद पर बने रहने के लिए रावत का 10 सितम्बर तक विधानसभा सदस्य चुना जाना संवैधानिक बाध्यता है लेकिन उपचुनाव न होने की संभावना को देखते हुए यही एक विकल्प बचा था। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे जनप्रतिनिधि कानून की धारा 191 ए के तहत छह माह की तय अवधि में चुनकर नहीं आ सकते। इसलिए मैंने अपने पद से इस्तीफा दिया। तीरथ ने पार्टी के बड़े नेताओं को इस बात का धन्यवाद किया कि, उन्होंने उन्हें यहां तक पहुंचाया।
संविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ सिंह रावत को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना था। तभी वह मुख्यमंत्री रह पाते। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायकी जीतनी थी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा सितंबर से पहले उपचुनाव कराने से इंकार करने के बाद सीएम रावत के सामने विधायक बनने का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस तरह वह केवल 115 दिन मुख्यमंत्री के पद पर रहे। वे ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्हें विधानसभा में बतौर नेता सदन उपस्थित रहने का मौका नहीं मिला।