दहशत…जेल… जमानत… फिर मां के लिए बनवाईं अपनी चमड़ी से चप्पल, एक हिस्ट्रीशीटर की अनोखी दास्तां

Raunak Gurjjar

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Raunak Gurjar: कहते हैं कि इंसान का हृदय कब परिवर्तित हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. हमने बचपन में एक कहानी सुनी थी मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक की. बताया गया था कि कलिंग युद्ध में रक्तपात से दुखी होकर उन्होंने बौद्द धर्म अपना लिया। वहीं कुछ इतिहासकारों का मत है कि वह पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुके थे। इसके बाद उन्होंने अहिंसा और शांति के लिए प्रचार किया. खैर अभी हम इतिहास नहीं वर्तमान की बात करेंगे. उस शख्स की बात करेंगे तो एमपी में कभी दहशत का पर्याय बन चुका था। जिसके खिलाफ कई आपराधिक केस दर्ज हैं. इसमें हत्या का आरोप भी शामिल है. फिलहाल भी वह जमानत पर बाहर है.

हम बात कर रहे हैं एमपी के उज्जैन में कुख्यात अपराधी रौनक गुर्जर की. 34 साल की उम्र में उस पर हत्या सहित 37 केस दर्ज हुए. दहशत ऐसी कि पांच साल पहले रौनक के नाम से लोग सिहर जाते थे. एक रोज गुर्जर गैंग का आपस में झगड़ा हुआ और मोंटू गुर्जर को गोली मार दी गई. इसके बाद दुकानदारों से रंगदारी मांगने और फायरिंग की घटनाएं सामने आईं.

तत्कालीन पुलिस अधिकारी सचिन अतुलकर ने इस गैंग की दहशत को खत्म करने की सोची. गैंग पर 40 हजार रुपये का ईनाम रखा गया. बदमाशों को पकड़ने के लिए छापेमारी का दौर चला. मुखबिर की सूचना पर रौनक गुर्जर का क्लू मिला. पुलिस ने घेराबंदी की तो दूसरी ओर से बदमाशों ने फायरिंग कर दी. पुलिस की कार्रवाई में रौनक गुर्जर को पैर में गोली लगी और पुलिस ने उसे इलाज के बाद जेल भेजा. अब वह जमानत पर बाहर है.

लेकिन आज अचानक रौनक की बात क्यों. दरअसल जेल से बाहर आने के बाद रौनक का जीवन बदल सा गया. वकौल रौनक वह रामायण का नियमित पाठ करने लगे और प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे। रामायण पढ़ते हुए उन्हें मां की सेवा की प्रेरणा मिली और फिर उन्होंने कुछ ऐसा किया कि जिसे देख मां की आंखों से वात्सल्य की अविरल धार बह निकली तो वहीं बेटा भी खुद को रोक न सका.

दरअसल रौनक ने चुपचाप एक अस्पताल में जाकर एक सर्जरी करवाई उसने अपनी जांघ की चमड़ी निकलवाई और उसके बाद उससे मां के लिए पादुकाएं बनवा दीं। जब उसने मां को ये पादुकाएं भेंट की तो मां फफक पड़ी. बेटा भी मां के प्रेम को देख अपने आंसू नहीं रोक पाया. फिलहाल इस मामले की चर्चा उज्जैन में आम है. कोई उन्हें कलयुग का श्रवण कुमार बता रहा है तो कोई किसी और उपाधि से नवाज़ रहा है.

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