
Raktbeej : दैत्य रक्तबीज के पास एक वरदान था। जिसके अनुसार उसके रक्त की बूंद जहां भी गिरेगी वहीं उसके जैसा एक और रक्तबीज बन जाएगा। पौराणिक धार्मिक कथाओं के अनुसार रक्तबीज पूर्व जन्म में असुर सम्राट रंभ था। एक बार रंभ तपस्या में लीन था। उसी वक्त इंद्र ने छल से उसे मार दिया। इसके बाद रंभ पुनर्जन्म में दैत्य रक्तबीर के रूप में हुआ। रक्तबीज ने वरदान भगवान शिव की तपस्या करके प्राप्त किया था। सारे देवता मिलकर भी रक्तबीज को नहीं मार पाए। वे जितना रक्तबीज को मारते उसका रक्त उतने ही रक्तबीज बना देता।
रक्तबीज का अंत
जब किसी से भी रक्तबीज का अंत नहीं हुआ, तब देवी चण्डिका ने अपने क्रोध से माँ काली को अवतरित किया। माँ काली विकराल क्रोध वाली और रूप ऐसा कि काल भी उन्हें देख कर डर जाए। देवी ने कहा कि तुम इस असुर के रक्त की हर बूंद का पान कर जाओ। जिससे कोई अन्य रक्तबीज न बन सके। यह सुन कर माँ काली ने रक्तबीज की गर्दन काटकर उसे खप्पर में रख लिया। माँ काली ने एक भी बूंद गिराए बिना सारा खून पी गयीं। इसके बाद जो भी दानव रक्त से उनकी जीह्वा पर उत्पन्न होते गए सब वह खाती गई। माँ काली ने रक्तबीज के हर एक रक्त का अंत कर दिया।
माँ काली का क्रोध
एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, रक्तबीज और उसकी सेना का अंत करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। देवी काली ने क्रोध में सारे प्राणियों को मारना शुरू कर दिया। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव खुद उनके रास्ते में लेट गए। शिव जी पर प्रहार करने से माँ काली कांप उठी और शर्मिंदा हो गईं।
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