
Sovereign Energy Future : जैसे-जैसे चरम मौसम, साइबर खतरों और भू-राजनीतिक उथल-पुथल ने वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को बदल दिया है, भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। अब चुनौती केवल ग्रिड में मेगावाट जोड़ने की नहीं रह गई है; बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि ऊर्जा हर समय, हर भारतीय के लिए उपलब्ध, किफायती, सुलभ और लचीली बनी रहे।
हालांकि हमारी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तेजी से बढ़ रही है, लेकिन जिस ग्रिड में इसे जोड़ा जा रहा है, वह दबाव झेल रहा है। 2021 में टेक्सास में हुई भीषण बिजली कटौती, दक्षिण अफ्रीका में लगातार चलने वाला लोड शेडिंग, और हाल ही में अप्रैल 2025 में पूरे इबेरियाई प्रायद्वीप में हुआ ब्लैकआउट, ये सभी स्पष्ट संकेत हैं: लचीलापन रहित ऊर्जा संक्रमण एक बड़ी कमजोरी है। भारत ऐसी नाजुक स्थिति का जोखिम नहीं उठा सकता। इसे केवल महत्त्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि दूरदृष्टि से नेतृत्व करना होगा।
इस चर्चा के केंद्र में ऊर्जा सुरक्षा को कोयले के भंडार या आयात बिल से आगे सोचने की तत्काल आवश्यकता है। 21वीं सदी की ऊर्जा रणनीति कहीं अधिक गतिशील होनी चाहिए। एक लचीला राष्ट्रीय ग्रिड, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित ऊर्जा इंटेलिजेंस, और महत्वपूर्ण अवसंरचना व तकनीकों पर संप्रभु नियंत्रण।
भारत को उसकी नवीकरणीय ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं के लिए वैश्विक प्रशंसा मिली है। 125 गीगावाट से अधिक की स्थापित नवीकरणीय क्षमता, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति, और निजी क्षेत्र का बढ़ता उत्साह, लेकिन हमारा ग्रिड संरचनात्मक रूप से केंद्रीकृत, जीवाश्म-आधारित उत्पादन के लिए बनाया गया था और अब यह अपनी सीमाओं तक पहुंच गया है।
गर्मी और सूखे के दौरान पीक डिमांड नियमित रूप से 235 गीगावाट को पार कर जाती है। मई 2022 में, जब कोयले की आपूर्ति कम पड़ गई और नवीकरणीय स्रोत शाम के पीक समय में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए, तब भारत ने मुश्किल से एक राष्ट्रीय ब्लैकआउट को टाला। वह एक चेतावनी थी।
2025 में स्पेन और पुर्तगाल में हुई बिजली गुल, जब कुछ ही सेकंड में 15 गीगावाट से अधिक उत्पादन क्षमता अचानक खत्म हो गई। उससे भी बड़ी चेतावनी है। इस ब्लैकआउट ने दूरसंचार, परिवहन और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित कर दिया। सिर्फ हरित ऊर्जा उत्पन्न करना पर्याप्त नहीं है। भारत को ऊर्जा को संग्रहित करना, वितरित करना, पूर्वानुमान लगाना, उसकी सुरक्षा करना और वास्तविक समय में पुनर्प्राप्त करना भी आना चाहिए।
भारत का बिजली ग्रिड अब भी बड़े पैमाने पर लंबी दूरी के ट्रांसमिशन कॉरिडोर, कमजोर ग्रामीण फीडर, और कम फंडिंग वाले वितरण कंपनियों (DISCOMs) पर निर्भर है। लगभग 20% बिजली ट्रांसमिशन और वितरण में ही नष्ट हो जाती है — जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक दरों में से एक है। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि ग्रिड में बुद्धिमान अनुकूलन क्षमता की कमी है। जब सौर ऊर्जा अचानक बढ़ती या घटती है, तो सिस्टम केवल प्रतिक्रिया करता है। यह पहले से अनुमान नहीं लगाता। इसका समाधान स्मार्ट, विकेंद्रीकृत और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से सुसज्जित ग्रिड संरचना में है।
AI मांग और आपूर्ति के पैटर्न का पूर्वानुमान लगा सकता है, फॉल्ट डिटेक्शन को स्वचालित कर सकता है, स्टोरेज और उत्पादन संसाधनों के बीच ऊर्जा वितरण को अनुकूलित कर सकता है, और ओवरलोड से बचा सकता है। अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने हाल ही में अपनी “ग्रिड आधुनिकीकरण पहल” शुरू की है, जिसमें AI को केंद्र में रखा गया है। भारत को भी अपनी संघीय संरचना और जलवायु विविधता को ध्यान में रखते हुए एक समान प्रयास करने की आवश्यकता है।
AI पूर्वानुमान आधारित रखरखाव में भी सहायक है। ट्रांसफॉर्मर में थकान, सबस्टेशन की अनियमितताएं, या साइबर हमले के जोखिमों की पहचान यह विफलता से पहले ही कर सकता है। ये कोई विलासिता नहीं हैं। एक ऐसे देश में, जहाँ एक छोटी सी बिजली कटौती भी स्वास्थ्य सेवाओं, डिजिटल वाणिज्य, सिंचाई और आवश्यक आवागमन को बाधित कर सकती है, वहाँ AI ऊर्जा सुरक्षा की बीमा पॉलिसी के समान है।
हालांकि ‘सौभाग्य योजना’ ने बिजली कनेक्शन बढ़ाने में सफलता पाई है, लेकिन आज भी करोड़ों लोग रोज़ाना बिजली कटौती या अस्थिर वोल्टेज का सामना करते हैं। उनके लिए ऊर्जा असुरक्षा कोई नीतिगत शब्द नहीं, बल्कि एक जीती-जागती सच्चाई है। भारत की ऊर्जा योजना को अब “कनेक्शन” से आगे बढ़कर “निरंतर सेवा” की दिशा में विकसित होना होगा। यहीं पर विकेन्द्रीकृत ऊर्जा संसाधन। जैसे सोलर रूफटॉप, सामुदायिक बैटरियां, बायोगैस जनरेटर और पंप्ड हाइड्रो अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ये संसाधन राष्ट्रीय ग्रिड पर निर्भरता को कम करते हैं।
स्थानीय स्तर पर लचीलापन बढ़ाते हैं और समुदायों को सशक्त बनाते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर इनका प्रभावी उपयोग तभी संभव है जब इन्हें डिजिटल रूप से नियंत्रित किया जाए AI आधारित माइक्रोग्रिड कंट्रोलर्स, ऊर्जा मांग पूर्वानुमान और गतिशील मूल्य संकेतों के माध्यम से।
भारत की ग्रामीण ऊर्जा क्रांति एक राष्ट्रीय लाइन से नहीं, बल्कि हजारों परस्पर जुड़े हुए, स्मार्ट नोड्स से आएगी, जो स्थानीय आवश्यकताओं का अनुमान लगाएंगे और राष्ट्रीय ऊर्जा प्रवाह को स्थिर बनाएंगे।
भारत की सौर और पवन ऊर्जा पर भारी निर्भरता — जो कि दोनों ही परिवर्तनीय स्रोत हैं — ग्रिड संचालकों के लिए गंभीर चुनौतियाँ पैदा करती है। जब बादल छाए हों या हवा न चले, तब तापीय संयंत्रों से तुरंत बिजली उत्पादन बढ़ाने की उम्मीद की जाती है। यह न केवल महंगा और प्रदूषणकारी है, बल्कि अब लंबे समय तक टिकाऊ भी नहीं रह गया है।
AI इस स्थिति का बेहतर समाधान प्रदान करता है। उपग्रह डेटा, सेंसर इनपुट और मशीन लर्निंग की सहायता से अब ग्रिड ऑपरेटर घंटों या दिनों पहले ही उत्पादन के पैटर्न का पूर्वानुमान लगा सकते हैं, जिससे ग्रिड शेड्यूलिंग बेहतर होती है और महंगे रिजर्व की आवश्यकता कम होती है।
पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और इसरो ने इस दिशा में शुरुआती सहयोग शुरू किया है, लेकिन एक पूर्ण स्तर का राष्ट्रीय नवीकरणीय इंटेलिजेंस नेटवर्क स्थापित किया जाना चाहिए — जहाँ AI, मौसम विज्ञान और डिस्पैच योजना का गहरा एकीकरण हो।
2020 में मुंबई में हुई बिजली कटौती — जिसे एक विदेशी साइबर हमले से जोड़ा गया था — ने दिखा दिया कि डिजिटाइज्ड ऊर्जा अवसंरचना कितनी संवेदनशील हो सकती है। स्मार्ट मीटर, SCADA सिस्टम और कंट्रोल सेंटर्स अब केवल तकनीकी उन्नयन नहीं हैं — ये रणनीतिक लक्ष्य बन चुके हैं।
जैसे-जैसे भारत अपनी ऊर्जा परिसंपत्तियों का डिजिटलीकरण कर रहा है, उसे साइबर सुरक्षा को भी एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में पुनर्परिभाषित करना होगा। इसके लिए एक समर्पित ऊर्जा साइबर कमांड की स्थापना आवश्यक है — जिसमें CERT-IN, राज्य उपयोगिताएं और निजी क्षेत्र के साझेदार एकीकृत हों, ताकि प्रतिक्रिया का समन्वय, प्रशिक्षण में सुधार और AI आधारित निगरानी की तैनाती हो सके।
क्योंकि बिजली कटौती अस्पतालों, फिनटेक, सिंचाई और ई-गवर्नेंस को पंगु बना सकती है, इसलिए ऊर्जा साइबर सुरक्षा अब सार्वजनिक व्यवस्था की बुनियाद बन चुकी है।
लेकिन सुरक्षा केवल कोड तक सीमित नहीं है — यह नियंत्रण तक भी जाती है। जैसे-जैसे भारत जीवाश्म ईंधन से सौर मॉड्यूल, बैटरी पैक और एआई प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ रहा है, हम एक नई तकनीकी निर्भरता के दौर में प्रवेश कर रहे हैं। आज भारत की 80% लिथियम बैटरी आयात और 90% से अधिक सोलर मॉड्यूल घटक चीन से आते हैं। साथ ही, भविष्यवाणी आधारित ऊर्जा विश्लेषण में उपयोग होने वाले अधिकांश उन्नत एआई प्लेटफॉर्म विदेशी स्वामित्व में हैं। यह स्थिति भारत को न केवल आपूर्ति श्रृंखला में झटकों के प्रति संवेदनशील बनाती है, बल्कि राजनीतिक दबाव के प्रति भी।
यदि इसे समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो ऊर्जा संक्रमण केवल एक प्रकार की ऊर्जा निर्भरता को दूसरी से बदलने का जरिया बन जाएगा। इस संदर्भ में, उन्नत रसायन कोशिकाओं (Advanced Chemistry Cells), सोलर मॉड्यूल्स और सेमीकंडक्टर्स के लिए उत्पादन-से-जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं एक अहम शुरुआत हैं। लेकिन इन्हें संप्रभु अनुसंधान एवं विकास (R&D) फंडिंग, सार्वजनिक खरीद अनिवार्यताओं और मांग समेकन मॉडल्स के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
भारत को “ऊर्जा संप्रभुता के लिए मेक इन इंडिया” (Make in India for Energy Sovereignty) रणनीति की घोषणा करनी चाहिए, जो केवल फैक्ट्रियों तक सीमित न हो। बल्कि इसमें कोड, चिप्स, भंडारण प्रणालियाँ, नियंत्रण एल्गोरिद्म और घरेलू क्लीन-टेक स्टार्टअप्स में निवेश शामिल हो।
भारतीय ग्रिड डेटा पर प्रशिक्षित एक संप्रभु एआई मॉडल, जिसे सरकार या किसी सार्वजनिक ट्रस्ट के स्वामित्व में रखा जाए — इसका एक रणनीतिक उदाहरण हो सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो ऊर्जा क्षेत्र में एआई की संभावनाएं विदेशी क्लाउड सेवाओं और वाणिज्यिक लाइसेंसों के हवाले कर दी जाएंगी। इसके समानांतर, लचीलापन का भौतिक पक्ष यानी ऊर्जा भंडारण। भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। जहां भारत के पास आपात स्थिति के लिए पेट्रोलियम भंडार हैं, वहीं नवीकरणीय ऊर्जा में उतार-चढ़ाव के लिए कोई समकक्ष व्यवस्था नहीं है।
बड़े पैमाने की बैटरी स्टोरेज, पंप्ड हाइड्रो रिज़र्व और गुरुत्वाकर्षण आधारित भंडारण प्रणालियाँ — इन सभी पर गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है। नीति का ध्यान और बजटीय शक्ति, अब ऐसे सिस्टम्स की ओर केंद्रित होनी चाहिए। जैसे बड़े पैमाने की बैटरी स्टोरेज, पंप्ड हाइड्रो रिज़र्व, गुरुत्वाकर्षण-आधारित प्रणालियाँ और ग्रीन हाइड्रोजन बफर्स। एक संप्रभु रणनीतिक नवीकरणीय भंडार (Strategic Renewable Reserve) जिसे ऊर्जा बैंक की तरह डिज़ाइन किया जाए। आवश्यक सेवाओं को जलवायु संकट, ईंधन आपूर्ति में रुकावट, या ग्रिड पर साइबर हमले जैसी स्थितियों में कम से कम दो सप्ताह तक बैकअप देने में सक्षम होना चाहिए। यहां भी AI की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती है। डिस्पैच प्राथमिकता प्रबंधन, जोखिम मॉडलिंग और रिज़र्व मोबिलाइजेशन रणनीतियों के लिए।
घरेलू नीति से आगे, अब भारत की ऊर्जा सुरक्षा को विदेश नीति के उपकरण के रूप में कार्य करना चाहिए। दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में ऊर्जा अस्थिरता बढ़ रही है, और यह भारत के लिए एक अवसर है कि वह नवीकरणीय तकनीकों, स्टोरेज समाधानों और ग्रिड सेवाओं का शुद्ध निर्यातक (net exporter) बने।
एक प्रस्तावित “ऊर्जा स्थिरता compact” (Energy Stability Compact) — एक स्वैच्छिक कूटनीतिक ढांचा — पड़ोसी देशों के बीच न्यूनतम आपूर्ति गारंटी, वास्तविक समय में बाजार डेटा साझा करने, और क्षेत्रीय भंडार एकत्रीकरण पर सहयोग को प्रोत्साहित कर सकता है। इससे न केवल संघर्ष का जोखिम कम होगा, बल्कि कार्बन-सीमित दुनिया में भारत की भू-राजनीतिक शक्ति भी बढ़ेगी।
Research Paper By Sarwesh Singh
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