
Bhopal Rendering Plant : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मांस से निकलने वाले वेस्ट को लेकर एक नई पहल की गई है, जो अब शहर के लिए न सिर्फ सफाई का समाधान बन रही है, बल्कि कमाई और रोजगार का जरिया भी. आदमपुर छावनी क्षेत्र में स्थापित प्रदेश का पहला रेंडरिंग प्लांट अब पूरी तरह से चालू हो चुका है, जहां चिकन, मटन और मछली से निकलने वाले अवशेषों को प्रोसेस कर पोल्ट्री और फिश फीड तैयार किया जा रहा है.
चारे के रूप में किया जाता है प्रयोग
भोपाल नगर निगम (बीएमसी) द्वारा स्थापित इस प्लांट में दुकानों से इकठ्ठा किया गया मांस अपशिष्ट वैज्ञानिक तरीके से संसाधित किया जाता है. शुरुआत में इसे छोटे टुकड़ों में काटा जाता है, फिर उच्च तापमान पर सुखाया जाता है ताकि उसमें मौजूद नमी को हटाया जा सके. अंत में इसे पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है, जो पोल्ट्री फार्म और फिश फार्म में जानवरों के चारे के रूप में उपयोग में आता है.
फिलहाल, शहर की 600 से ज्यादा चिकन-मटन दुकानों और सड़कों के किनारे लगने वाली फिश शॉप्स से हर महीने करीब 17 टन वेस्ट इस प्लांट में पहुंच रहा है. अभी यह आंकड़ा शुरुआती स्तर पर है, लेकिन बीएमसी का अनुमान है कि जब शहर में आधुनिक स्लॉटर हाउस पूरी तरह चालू हो जाएगा, तब यह प्लांट प्रति माह 300 टन तक वेस्ट प्रोसेस कर सकेगा.
लगभग 5 करोड़ रुपये की लागत से बने इस संयंत्र से हर साल करीब 5 लाख रुपये की आय होने की संभावना जताई गई है. साथ ही, यह परियोजना स्थानीय स्तर पर 50 से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान कर रही है.
पर्यावरण के लिए लाभदायक
नगर निगम अधिकारियों का मानना है कि आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ेगी. जहां पहले मांस दुकानों से निकलने वाला वेस्ट तालाबों, नालों और सार्वजनिक स्थानों में फेंक दिया जाता था, वहीं अब यह वेस्ट शहर की सफाई के साथ-साथ पर्यावरण को भी लाभ पहुंचा रहा है. इस प्लांट के जरिए न सिर्फ दुर्गंध और प्रदूषण में कमी आई है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी खतरों को भी काफी हद तक रोका जा रहा है.
भोपाल का यह कदम न केवल अपशिष्ट प्रबंधन का एक सफल मॉडल बन रहा है, बल्कि शहरी क्षेत्रों में वेस्ट से वैल्यू निकालने की मिसाल भी पेश कर रहा है.
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