
‘कभी तन्हाइयों में यु हमारी याद आएगी
अँधेरे छा रहे होंगे के बिजली कौंध जाएगी..’
ऐसे ही कई सदाबहार हिंदी गीतों को आवाज़ देने वालीं मशहूर गायिका मुबारक बेगम लोगों के दिलों को छूने का हुनर बखूबी जानती थीं। 1950 से 1970 के दौरान बॉलीवुड फिल्मों के गानों और ग़ज़लों के लिए उन्हें याद किया जाता है। इस दौर में उन्होंने एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन और खय्याम जैसे सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों के साथ काम किया था और सिनेमा में छा गयी थीं।
राजस्थान के झुंझुनू जिले में जन्मीं मुबारक बेगम के पिता की आर्थिक दशा बहुत ठीक नहीं थी। वह पैदा तो अपने ननिहाल में हुईं लेकिन 1946 में पूरा परिवार मुंबई आ बसा था। बचपन में मुबारक बेगम नूरजहां और सुरैया के गानों से बहुत प्रभावित थीं और दिन-रात उनके गाने गुनगुनाया करतीं।
उनका हुनर और गायन की ओर रूझान देखकर पिता ने उन्हें किराना घराने के उस्ताद रियाज़उद्दीन खां और उस्ताद समद खां की शागिर्दी में गाने की तालीम दिलवायी। उन्हीं दिनों मुबारक बेगम को ऑल इंडिया रेडियो पर ऑडीशन देने का मौक़ा मिला, जिसे उन्होंने पास कर लिया और रेडियो के ज़रिये उनकी आवाज़ घर-घर पहुंचने लगी। इसी तरह गायकी की दुनिया में उनकी पहचान होने लगी और फिल्मों में गाने का अवसर उन्हें 1949 में आई फ़िल्म ‘आइए’ से मिला।
‘मोहे आने लगी अंगड़ाई
आजा आजा बालम हरजाई..’
इस फ़िल्म में उन्होंने इसी गाने से ऊंचाइयों तक पहुंचने का रास्ता बना लिया था। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में बेहतरीन गीत गाए लेकिन 1961 में आई ‘हमारी याद आएगी’ के गीत ने उनको एक अलग पहचान दिला दी। फिर 1963 में ‘हमराही’ में गाए ‘मुझको अपने गले लगा लो, ओ मेरे हमराही’ जैसे गानों ने उन्हें भारतीय सिनेमा की जानी-मानी गायिका बना दिया।
60 के दशक में उन्होंने कई क्लासिक गाने भी दिए। अपने पूरे करियर में मुबारक बेगम ने 170 से ज़्यादा गीत गाए थे जो आज भी संगीत प्रेमी बहुत पसंद करते हैं।1980 की फ़िल्म ‘रामू तो दीवाना है’ का गाना ‘सांवरिया तेरी याद में’ उनका गाया अंतिम फिल्मी गीत रहा। मुबारक बेगम का आख़िरी समय आर्थिक तंगी में बीता। उन्हें सात सौ रुपये महीने की पेंशन मिलती थी जिससे वह अपना खर्च चलाती थीं। 2016 में 80 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। वह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज़ अनश्वर है।