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Bihar News: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, सार्वजनिक करना चाहिए जाति गणना का डेटा

बिहार में जाति आधारित सर्वे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने सर्वे की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है। कोर्ट ने कहा कि सर्वे की पूरी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में होनी चाहिए, ताकि कोई चाहे तो उसके निष्कर्षों को चुनौती दे सके। साथ ही, कोर्ट ने मामले में कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया है। अगले पांच फरवरी को कोर्ट फिर मामले की सुनवाई करेगा। पटना हाईकोर्ट के बिहार में जाति आधारित सर्वे को मंजूरी देने के आदेश को चुनौती देने के लिए कई गैर सरकारी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

कोर्ट का फैसला कितना सही?

इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर चुका है। मंगलवार दिसंबर को मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने की। पीठ ने याचिकाकर्ता संगठनों से अंतरिम राहत पर सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि अब अंतरिम आदेश का क्या अर्थ है? यही कारण है कि हाईकोर्ट का आदेश राज्य सरकार के पक्ष में है, और आंकड़े भी आम जनता के अधिकार में हैं। अब विचार के लिए केवल दो या तीन पहलू बचे हैं। हाई कोर्ट का आदेश सही है कि सर्वे की पूरी प्रक्रिया सही है, जैसे कानूनी मुद्दा है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि सरकार ने सर्वे के रिकॉर्ड को अंतरिम तौर पर लागू करना भी शुरू कर दिया है, हालांकि रिकॉर्ड सार्वजनिक है।

अगले हफ्ते कोर्ट की सुनवाई

50 प्रतिशत से 75 प्रतिशत की सीमा बढ़ी है, हाईकोर्ट ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने को चुनौती दी है, लेकिन हाईकोर्ट के मुख्य आदेश के खिलाफ इस कोर्ट में मामला लंबित है। इसे राज्य सरकार लागू कर रही है। उसने पूरी प्रक्रिया को चुनौती दी है, इसलिए अगले सप्ताह कोर्ट को अंतरिम राहत पर सुनवाई करनी चाहिए। यद्यपि पीठ ने कहा है कि इस मामले में सुनवाई की जरूरत है और कोर्ट सुनवाई करेगा, अगले सप्ताह सुनवाई कठिन होगी। बिहार सरकार के वरिष्ठ वकील ने कहा कि विवरण और डाटा एक विशिष्ट वेबसाइट पर सार्वजनिक हैं। उसे कोई भी देख सकता है। पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या पूरा देश सार्वजनिक डोमन में है।

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