
Ram Mandir : मोहन भागवत ने कहा कि हमारे भारत का इतिहास पिछले तकरीबन डेढ़ हजार सालों से आक्रांताओं से निरंतर संघर्ष का इतिहास है। आरंभिक आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना और कभी-कभी अपना राज्य स्थापित करने के लिए होता था। परंतु, इस्लाम के नाम पर पश्चिम से हुए आक्रमण हमारे समाज का पूर्ण विनाश और अलगाव ही लेकर आया।
भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया
भागवत ने कहा कि ऐसा उन्होंने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था ताकि भारतीय स्थायी रूप से कमजोर हो जाएं और वे उन पर अबाधित शासन कर सकें। अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir) का विध्वंस भी इसी मनोभाव से, इसी उद्देश्य से किया गया था। आक्रमणकारियों की यह नीति सिर्फ अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए थी। भारतीय शासकों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, परन्तु विश्व के शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के लिए आक्रामक होकर ऐसे कुकृत्य किये हैं।
राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा
परंतु, इसका भारत पर उनकी अपेक्षानुसार वैसा परिणाम नहीं हुआ जिसकी आशा वे लगा बैठे थे। इसके विपरीत भारत में समाज की आस्था निष्ठा और मनोबल कभी कम नहीं हुआ, समाज झुका नहीं, उनका प्रतिरोध का जो संघर्ष था वह चलता रहा। इस कारण जन्मस्थान बार-बार पर अपने आधिपत्य में कर, वहां मंदिर बनाने का निरंतर प्रयास किया गया। भागवत ने कहा कि उसके लिए अनेक युद्ध, संघर्ष और बलिदान हुए। लेकिन, राम जन्मभूमि का मुद्दा हिंदुओं के मन में बना रहा।
युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगी
1857 में विदेशी अर्थात ब्रिटिश शक्ति के विरुद्ध युद्ध योजनाएं बनाई जाने लगी तो उसमें हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर उनके विरुद्ध लड़ने की तैयारी दर्शाई और तब उनमें आपसी विचार-विनिमय हुआ और उस समय गौ–हत्या बंदी और श्री रामजन्म भूमि मुक्ति के मुद्दे पर सुलह हो जायेगी, ऐसी स्थिति निर्माण हुई।
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