
Allahabad: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad Highcourt) ने बच्चों के सुधारगृह की हालत देखते हुए सख़्त फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने आज (21 अक्टूबर) को बाल गृह की हालत पर बात करते हुए कहा कि बाल गृह के हालात जेलों से भी बद्दत्तर है। यहां बच्चों को न ढंग के पौष्टिक आहार मिल रहे हैं और न ही सांस लेने के लिए ताजी हवा और रौशनी। बाल गृह की खराब स्थिती को देखते हुए कोर्ट ने कमियों को जल्द से जल्द दूर करने के निर्देश दिए है।
Allahabad: प्रमुख सचिव को कोर्ट ने दिए यह आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चों के सुधारगृह पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों को हनन है। मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर (Preetikar Diwakar) और न्यायमूर्ति अजय भनोट (Ajay Bhanot) की खंडपीठ ने बाल गृह की स्थिती में तुरंत सुधार के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग यूपी के प्रमुख सचिव अगली सुनवाई पर बच्चों और बाल गृहों की कुल संख्या का अवलोकन करके कोर्ट को बताएं। इसके साथ ही बाल गृहों के सुधार के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए उसकी जानकारी व्यक्तिगत हलफनामे में प्रस्तूत करें।
बता दें कि न्यायमूर्ति अजय भनोट ने खुद बालगृहों का निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने यंहा बहुत सी कमियां पाईं।
Allahabad: क्या हैं मुख्य कमियां-
1-बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की कमी होना
2-बालगृह में पर्याप्त रौशनी और ताजी हवा का न होना
3-जेलों से भी बद्दत्तर बालगृह के हालात
4- खेल के मैदान या खुली जगह नहीं है
5- शैक्षिक सुविधाओं में कमी होना
न्यायमूर्ति अजय भनोट के किए गए निरीक्षण के आधार पर कोर्ट ने कुल 9 बिंदुओं पर सुझाव के आदेश दिए है।
क्या हैं वो नौ बिंदुएं-
1-खाने में पर्याप्त पौष्टिक आहार
2- बालगृह में रौशनी और ताजी हवा
3- खेल-कूद के लिए खुली जगह
4-कर्मचारियों और पर्यवेक्षकों की कुशलता में सुधार
5- बालगृह के वातावरण में सुधार
6-शैक्षिक सुविधाओं का विकास
7- बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान
8-औपचारिक शिक्षा प्रणाली को विकसित करना
9- शिक्षा के अधिकार का पालन
कोर्ट ने शैक्षिक सुविधाओं के विकास पर बल दिया है। कहां है कि बच्चों के प्रदर्शन पर सतत निगरानी रखने की जरूरत है, जिससे कि उनकी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर किया जा सके। कोर्ट ने बच्चों में भावनात्मक विकास और शारीरिक गतिविधियों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता बताई है। कहा है कि ऐसे बच्चे परिवारों से दूर रहते हैं। लिहाजा, प्रोफेशनल संस्थाओं के परामर्श से परिवर्तनकारी वातावरण और गतिविधि प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। कोर्ट ने औपचारिक शिक्षा प्रणाली को विकसित करने की जरूरत बताई है और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया है। जिससे कि बाजार के नियोक्ताओं से उन्हें जोड़ा जा सके। इसके साथ ही नियमित शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कहा है।
बाल गृहों में शिक्षा के अधिकार का पालन होना यूपी सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट ने कहा कि बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है और संवैधानिक न्यायालय द्वारा इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। यूपी सरकार की जिम्मेदारी है कि बाल गृहों में शिक्षा के अधिकार का पालन कराया जाए। कोर्ट ने यूपी सरकार को बाल गृह में रह रहे बच्चों को आसपास के प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिला दिलवाने का सुझाव दिया है। साथ यह भी कहा है कि बच्चों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उनके परिवारों की आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता खत्म करने पर भी राज्य सरकार विचार करे।
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