Mallikarjun Kharge : ‘विपक्ष की आवाज का गला घोटना अब…’ मल्लिकार्जुन खरगे ने सभापति जगदीप धनखड़ पर साधा निशाना

Mallikarjun Kharge : संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। ऐसे में संसद में खूब हंगामा हुआ। इसके साथ ही विपक्ष लगातार सभापति जगदीप धनखड़ पर हमला कर रहा है। इसी कड़ी में मल्लिकार्जुन खरगे ने एक पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ पर निशाना साधा है। मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को कहा कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूं. यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल (सभापति जगदीप धनखड़) में पूरी तरह खंडित हो गई।
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि 16 मई 1952 को सभापति के रूप में राज्य सभा में पहले सभापति डॉ राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूं. यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल (सभापति जगदीप धनखड़) में पूरी तरह खंडित हो गई। आज विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब राज्य सभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है।
उन्होंने कहा कि संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं. विपक्ष से बिना वजह authentication की मांग करते हैं, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को, मंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने देते हैं. वो कोई भी झूठ सदन में कह दें, कोई भी फेक न्यूज फैला दें, उन्हें कभी नहीं रोकते, लेकिन विपक्ष के सदस्यों को मीडिया की रिपोर्ट को भी प्रमाणित करने को कहते हैं और ऐसा न करने पर उन पर कार्यवाही करने की धमकी देते हैं।
कई प्वाइंट बताए
सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है. कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था। सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है. वो अक्सर बीजेपी की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं. वो रोज ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है।
उन्होंने इस महान पद का दुरपयोग करते हुए, पद पर आसीन होकर, अपने राजनीतिक विचारक – RSS की प्रशंसा की और यहां तक कहा कि “मैं भी RSS का एकलव्य हूं” जो की संविधान की भावना से खिलवाड़ है। अध्यक्ष सदन में और सदन के बाहर भी सरकार की अनुचित चापलूसी करते दिखते हैं. प्रधानमंत्री को महात्मा गांधी के बराबर बताना, या प्रधानमंत्री की accountability की मांग को ही ग़लत ठहराना, ये सब हम देखते आए हैं. अगर विपक्ष वॉकआउट करता है तो उसपर भी टिप्पणी करते हैं, जबकि वॉकआउट संसदीय परंपरा का ही हिस्सा है।
सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के पार्ट्स expunge करते हैं. यहां तक की नेता विपक्ष के भाषण के भी महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीक़े से और दुर्भावनापूर्ण रूप से expunge करने का निर्देश देते रहे हैं. जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों की बेहद आपत्तिजनक बातों को भी रिकॉर्ड पर रहने देते हैं। सभापति ने रूल 267 के तहत कभी भी किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है. विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं. जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला बुला कर रूल 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं।
सभापति के कार्यकाल के दौरान संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल इकतरफ़ा है. ज्यादातर समय केवल chair और सत्ता पक्ष के लोग दिखाए जाते हैं. विपक्ष के किसी भी आंदोलन को ब्लैकआउट कर देते हैं. जब कोई विपक्षी नेता बोलता है, तो कैमरा काफी समय के लिए चेयर पर रहता है. संसद टीवी के प्रसारण के नियम मनमाने ढंग से बदल दिए गए हैं. General Purposes Committee (GPC) की मीटिंग के बगैर बदल दिए हैं।
Short Duration Discussion और Calling Attention अब बहुत कम लगाए जाते हैं. UPA के वक्त हर हफ्ते दो Calling Attention और एक short duration discussion लगता था. अब नहीं होता. Half an Hour Question, Statutory Resolution भी नहीं होते. सारे बिल भी Standing Committee को नहीं भेजते हैं. Public Importance के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं होती है।
सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं. Statues शिफ्ट करना हो या watch and ward की व्यवस्था बदलना हो, किसी के लिए मशविरा नहीं किया. Statue कमेटी की मीटिंग नहीं हुई. GPC की कोई मीटिंग नहीं हुई, Rules Committee की मीटिंग अब नहीं होती। विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं. राज्यसभा में स्टेटमेंट पर स्पष्टीकरण की परंपरा थी, वो भी बंद कर दी है।
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