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Supreme Court : बाल पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला… अश्लील कंटेंट रखना दंडनीय अपराध…

Supreme Court : बाल पोर्नोग्राफी देखने के मामले पर मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल पोर्नोग्राफी को देखना और डाउनलोड करना अपराध है। इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि इस प्रकार की सामाग्री को रखना भी कानूनी तौर पर अपराध है।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला

28 वर्ष के एक व्यक्ति जिस पर अपने मोबाइल पर बाल पोर्नोग्राफी सामग्री को डाउनलोड करने का आरोप था, 11 जनवरी को मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आपराधी के खिलाफ कार्रवाई भी रद्द कर दी गई थी। साथ ही यह कहा था कि आज के समय में बच्चे पोर्नोग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। समाज को उन्हें दंडित करने के बजाय शिक्षित तकने के लिए परिपक्व होना चाहिए।

मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दर्ज की गई थी। जिसमें कहा गया था कि केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना पॉक्सो अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध में नहीं आता है।

आईटी अधिनियम की धारा 67 बी

पॉक्सो अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत मद्रास हाईकोर्ट ने हरीश के खिलाफ मामला रद्द कर दिया था। आईटी अधिनियम की धारा 67 बी के तहत यह कहा गया था, कि यौन-स्पष्ट कार्य या आचरण में बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री प्रकाशित, प्रसारित या बनाई जानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘इस प्रावधान को ध्यान से पढ़ने से बाल पोर्नोग्राफी देखना, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67बी के तहत अपराध नहीं बनता है।’

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो याचिकाकर्ता संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का की दलीलों पर ध्यान दिया था। जिसमें पाया गया था कि इस संबंध में हाईकोर्ट कर फैसला कानून के बिलकुल विपरीत था। नई दिल्ली स्थित बचपन बचाओ आंदोलन और फरीदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की ओर से अदालत में पेश हुए थे।

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