
Rupee at its lowest level : अमेरिकी डॉलर की मजबूत स्थिति और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बीच भारतीय रुपया सोमवार को 55 पैसे टूटकर 86.59 के स्तर पर पहुंच गया, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। यह दो साल में रुपया की सबसे बड़ी गिरावट है। 30 दिसंबर को रुपया 85.52 प्रति डॉलर के स्तर पर था, और अब तक सिर्फ दो हफ्तों में इसमें एक रुपये से अधिक की गिरावट देखी गई है।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 86.12 पर खुला और फिर कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले सर्वकालिक निचले स्तर 86.59 पर पहुंच गया। हालांकि, कुछ देर बाद रुपया ने थोड़ी वापसी की और डॉलर के मुकाबले 86.50 पर कारोबार कर रहा था, जो कि 46 पैसे की गिरावट है।
जानिए विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने क्या कहा?
विदेशी मुद्रा कारोबारियो का कहना है की विदेश में कच्चे तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हो रही है। इस समय शेयर बाजार लगातार गिर रहा है यह भी भारतीय मुद्रा के कमजोर होने की एक वजह है। शेयर बाजार के लगातार गिरने से एक नकारात्मक धारणा निवेशकों में बन गई है इसीलिए सब अपना पैसा मार्केट से निकाल रहे हैं। जिसके कारण रुपया कमजोर होता जा रहा है।
इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप के प्रधानमंत्री बनने के साथ व्यापार पर प्रतिबंधात्मक नियमों के कारण डॉलर की मांग में वृद्धि हुई है, जिससे डॉलर की स्थिति और मजबूत हो गई है। इसके परिणामस्वरूप रुपया 85.80 प्रति डॉलर के स्तर से भी नीचे गिरकर 86.59 तक पहुंच गया।
क्यों कमजोर हो रहा है रुपया
रुपया की कमजोरी के कई वैश्विक कारण हैं। अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, अमेरिकी 10 साल के बांड यील्ड में बढ़ोतरी और चीन की मुद्रा युआन में गिरावट, इन सभी ने रुपया को दबाव में डाला है। साथ ही, एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) की भारी बिकवाली भी इसका प्रमुख कारण बन रही है।
विदेशी निवेशकों की निकासी
भारतीय शेयर बाजार से एफपीआई द्वारा पूंजी की निकासी भी रुपया की कमजोरी को बढ़ावा दे रही है। वैश्विक निवेशक भारतीय बाजार से अपनी पूंजी निकालकर डॉलर में निवेश कर रहे हैं, जिससे रुपये पर और दबाव बढ़ रहा है।
पिछले साल थी रुपया सबसे मजबूत मुद्रा
हालांकि, 2024 में रुपया एशिया की सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में उभरा था। पिछले साल, रुपया अपनी उच्च ब्याज दरों (कैरी यील्ड) के कारण एक लोकप्रिय मुद्रा बन गया था। लेकिन अब, वैश्विक परिस्थितियां और बाजार की उथल-पुथल ने भारतीय मुद्रा को दबाव में ला दिया है।
बता दें कि रुपए की गिरावट अब एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था, तेल की कीमतों में वृद्धि और विदेशी निवेशकों की निकासी जैसे कारक इसकी कमजोरी के प्रमुख कारण बन रहे हैं। आने वाले समय में अगर यह रुझान जारी रहता है, तो भारतीय मुद्रा और भी दबाव में आ सकती है।
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