
Political Party Promises Case Before Supreme Court: साल के अंत तक देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होना तो वहीं अगले साल देश में लोकसभा होना है। चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टी देश की जनता से सैकड़ों वादे करती है लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद वादे पर अमल हो या नहीं हो इसकी कोई बाध्यता नहीं है। इस मुद्दे से जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है।
इस पर हम नियंत्रण नहीं कर सकते
देश में साल के अंत तक मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधान सभा चुनाव होना है इससे पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे वादों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं। सुनावाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि चुनाव से पहले सभी तरह के वादे किए जा सकते हैं और कोर्ट ऐसे कृत्यों को नियंत्रित नहीं कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच की टिप्पणी
बता दें, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे वादों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता भट्टूलाल जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “चुनाव से पहले सभी तरह के वादे किए जाते हैं और हम इस पर नियंत्रण नहीं कर सकते।”
बावजूद भी मामला किया गया सूचीबद्ध
हालाकि, दायर याचिका पर टिप्पणी करने के बाद भी न्यायालय ने भट्टूलाल जैन की रिट याचिका को भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक लंबित मामले के साथ सूचीबद्ध कर दिया है, जिसमें भारत के चुनाव आयोग को चुनाव चिन्ह जब्त करने और उन राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की है, जो “अतार्किक मुफ्त उपहार” देने का वादा करते हैं या वितरित करते हैं और चुनाव से पहले सार्वजनिक धन का उपयोग करते हैं।
याचिका पर चुनाव आयोग और राजनीतिक पार्टी को नोटिस
भट्टूलाल जैन की याचिका पर केंद्र सरकार, भारत चुनाव आयोग और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने उनसे राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय को पक्षकार की सूची से हटाने और उसके स्थान पर संबंधित राज्य को पक्षकार बनाने के लिए कहा है। कोर्ट ने आगे कहा, “नोटिस चार सप्ताह में वापस किया जा सकता है।”
पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट पहुंचा था मामला
बता दें, सामाजिक कार्यकर्ता भट्टूलाल जैन ने पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें मुख्यमंत्री को घोषणाएं और वादे न करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। उन्होंने राज्य की वित्तीय स्थितियों पर गौर करने के लिए निर्देश देने की भी प्रार्थना की थी। लेकिन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 26 जून को भट्टूलाल जैन की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि अखबार की रिपोर्ट के आधार पर दायर जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसके बाद जैन ने अपील के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
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