
दीपावली, हिन्दू धर्म का एक खास त्योहार जो हम न जाने कितने ही सालों से मनाते आ रहे हैं। प्रभु श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपावली का उत्सव सालों से मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और माता जानकी अमावस की रात अयोध्या वापस लौटे थे। अपने पूज्य के लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर अयोध्या नगरी को रौशन किया था।
अयोध्या के लोगों ने दीप सिर्फ उजाला करने के लिए ही नहीं जलाया था, बल्कि इसके पीछे एक और वजह भी थी। वजह थी अंधेरे पर विजय पाना, अंधकार को खत्म कर रोशनी को हमेशा के लिए स्थापित करना। अब रौशनी को स्थापित करने से बहुत लोगों को यह समझ आया होगा कि खूब सारे दीये और लाइट्स लगा कर घर जगमगाना ही अंधेरे को मिटाना है। पर क्या सिर्फ यही अंधकार को मिटाने की सही परिभाषा है। जी हां, बस इतना ही काफी नहीं है। आइए जानते हैं इस अंधकार की सही परिभाषा।
आत्मचिंतन करने की है जरूरत
इस जगत में अंधकार सिर्फ अंधेरे की परिभाषा नहीं है। असल में समाज में पनप रहे भेदभाव, ऊंच-नीच, दिखावा और हर उस खराब सोच का संबंध भी अंधकार से है, जो हमें इंसान की जगह हैवान बनाता है। जो किसी को पैसों के लिए नीचा दिखाए वो हैवान, जो जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव करे वो हैवान, हैवान जो लोगों को उनके कपड़ों से जज करता है। हैवान जो कोई भी ऐसी नीयत रखता है, जो किसी को गहरी चोट पहुंचाए। ये वो अंधेरा नहीं जिसे हम दीया जलाकर कुछ पल के लिए दूर कर देते हैं। ये वो अंधकार है जो हर रोज हमारे भीतर किसी पौधे की भांती लगातार बढ़ रहा है और हमें इसका आभास भी नहीं है। ये है हमारे अंदर का अंधकार जिसे हम लाइट्स और दीयों से नहीं दूर कर सकते। हां अगर कोशिश करें तो आत्मचिंतन और कुछ भी करने से पहले उसके परिणाम को सोचकर खुदपर उस बात को महसूस कर जरूर कर सकते हैं।
छोटी-छोटी आदतों को सुधारने की आवश्यकता
सोचिए क्या हम कभी किसी को उसके रंग-रूप, हाईट, शारीरिक बनावट या उसके स्टेटस पर कॉमेंट करने से पहले एक बार भी सोचते हैं? क्या सोचते हैं हम कि हमसे पहले भी न जाने कितनों ने उनका इसी बात पर उपहास किया होगा? जिसकी वजह से वो हमेशा ही निराश और उदासी से भरा रहता है। क्या ऐसा करके हमने उसकी जिंदगी में अंधकार नहीं भरा? जब हम किसी के फटे कपड़ों को देखकर मुहं बनाते हैं। सभी की हां में हां मिलाते हुए स्कूल या ऑफिस में किसी एक लड़के या लड़की को अकेला फील कराते हैं, झूठी अफवाह फैलाते हैं, या वो तमाम काम जो हम रोज ही जानकर या अनजाने में कर जाते हैं। ये सभी हमारे भीतर का अंधेरा ही तो है। जो हम उनके जीवन में भी बो रहे हैं।
लोगों की तकलीफ और पीड़ा को दूर करने की रखें क्षमता
इस दीवाली जरूरत है अपने अंदर के अंधकार को मिटाने की, जरूरत है आत्मचिंतन करने की, जरूरत है उस जहरीले पौधे को जड़ से उखाड़ फेंकने की जो हमारे अंदर पनप रहा है और अपनी जड़े दूसरों तक फैला रहा है। इस दिवाली दीप के साथ-साथ एक दीया अपने मन में भी जलाए। दीया अच्छाई का, मानवता का, इंसानियत का। मिटा दीजिए उस दिखावे के दीमक को जो हमारे अंदर बैठ हमें खोखला बना रही है और आरंभ कीजिए एक ऐसी मजबूत इमारत का जो अपने अंदर लोगों की तकलीफ और पीड़ा को समाने की क्षमता रखता हो।
ये दिवाली इंसानियत वाली
तो ये दिवाली इंसानियत वाली। मिठाई के साथ-साथ लोगों के जीवन में मिठास घोलने वाली। आइए इस दिवाली घर में उजाला करने के साथ अपने मन में भी उजाला करें और साथ ही बाकियों की जिंदगी को भी रौशनी और मिठास से भर दें। हैपी दिवाली।
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